हैल्लों दोस्तो ! आज के आर्टिकल में हम एल नीनो (El Nino) के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले है जिसमें हम एल नीनो क्या है? एल नीनों परिकल्पना क्या है ? और इसके प्रभाव के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले है। इसी के साथ में हम ला नीनो के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेंगें। तो चलिए बढ़ते है आज के आर्टिकल की ओर।
एल नीनो (El Nino)
एल नीनो की परिभाषा (El Nino Meaning) : पेरू के तट पर शीत उद्वेलन के बंद होने एवं समुद्र तल के क्रमश: उत्थान तथा गर्म जल धारा की उत्पत्ति के सामूहिक घटनाक्रम को एल नीनो कहते है।
यह उष्ण कटिबंधीय मौसमी तंत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। एल नीनो को ईसा का शिशु कहा जाता है क्योंकि यह 25 दिसम्बर के आसपास उत्पन्न होती है। यह नन्हीं गर्म जलधारा है परंतु मौसमी तंत्रो पर भयावह घटनाएँ उत्पन्न करती है, इसलिए इसे भयावह शिशु भी कहते हैं। जैसे – शुष्क मरूभूमि में तीव्र वर्षा एवं आर्द्र प्रदेशों में शुष्कता उत्पन्न होना।
एल नीनो प्रभाव की यान्त्रिकी
दक्षिणी प्रशान्त महासागर में पीरू तट के निकट तापमान सामान्य से अधिक हो जाने पर वायुदाब की परिस्थियाँ प्रभावित होती है। तापमान में वृद्धि के प्रभाव के कारण इस क्षेत्र में वायुदाब सामन्य से कम हो जाता है। भूमण्डलीय वायुदाब तन्त्र तथा वायुप्रवाह तन्त्र पर इसके प्रभाव पड़ने की कल्पना की गई है। पीरू तट के निकट सामान्य से कम वायुदाब हो जाने के कारण यहाँ से दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों को धकेलने वाला बल क्षीण हो जाता है। इसके स्थान पर यहाँ व्यापारिक पवनों को आकर्षित करने वाला या खींचने वाला बल प्रभावी हो जाता है। इसके कारण इन व्यापारिक पवनों का एशिया की ओर प्रवाह भी कमजोर पड़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के देरी से आने की तथा कमजोर होने की सम्भावनाएँ व्यक्त की जाती है।
एल नीनो प्रभाव (El Nino Effects in Hindi)
उतार-चढ़ाव उत्पन्न करने वाली समुद्री धाराएँ वातावरण को प्रभावित करती हैं। इनमें से एक प्रभाव एल नीनो प्रभाव कहलाता है। इस प्रभाव से समुद्र का पानी असामान्य रूप से गर्म हो जाता है। यह प्रभाव दक्षिण तथा मध्य अमेरिकी समुद्री किनारों पर साल के अन्त में देखा गया हैं। इस प्रभाव के कारण समुद्री मछलियों की संख्या प्रभावित होने लगती है। तथा वर्षा और मौसम में भी परिवर्तिन आने लगता है।
सामान्यतया वायु पश्चिम में बहती हुई समुद्री गर्म पानी को आस्ट्रेलिया की ओर गति करती है जबकि ठण्डा पानी अमेरिकी समुद्री किनारे की ओर रहता है। जिसके कारण समुद्री मछलियों को भी पोषण प्राप्त होता है। लेकिन प्रत्येक 3-7 वर्ष पश्चात् वायु की यह दिशा बदल जाती है। जिसके फलस्वरूप, गर्म जल दक्षिणी अमेरिका की ओर स्थानान्तरित हो जाता है।
एल नीनो प्रभाव समुद्री वायुमण्डल तंत्र के ट्रोपिकल पेसिफिक क्षेत्र में परिवर्तन उत्पन्न करता है। जिसके परिणामस्वरूप मौसम में असामान्य परिवर्तन होने लगते हैं। ये परिवर्तन हैं – वर्षा का दक्षिणी अमेरिका तथा पेरू क्षेत्र मंे बढ़ना जिसके फलस्वरूप बाढ़ आती है और पश्चिमी पेसिफिक क्षेत्र में सूखा पड़ता है तथा आस्ट्रेलिया में विनाशकारी ‘‘बुश फायर’’ का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
ला निना (La Nina)
ला निनो वास्तव में एल निनो का विपरीतार्थक शब्द है। यह वैसी स्थिति है, जब दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक पवन और अधिक सशक्त हो जाती है, जिससे पेरू के पास शीत जल उद्वेलन ओर तीव्र हो जाता है। तथा तटील जल का तापमान सामन्य से ठंडा हो जाता है। इस स्थिति में बाकर प्रकोष्ठ और अधिक सशक्त हो जाता है, जिससे अरब से आने वाली वाकर की हवा का प्रभाव तीव्र हो जाता है। इससे दक्षिण पश्चिमी मानसून की गति बढ़ जाती है तथा भारतीय उपमहाद्वीप पर सामान्य से अधिक वर्षा होती है।
एल निनो के रहस्य को अनावृत करने के उद्देश्य से Monex अभियान चलाया गया, परंतु उस कालावधि में एल निनो विलुप्त हो गया तथा अभियान दल के लौटते ही सबसे प्रचंड/शक्तिशाली एल निनो आया।
ला नीनो प्रभाव की यान्त्रिकी
दक्षिणी प्रशान्त महासागर में पीरू तट के निकट तापमान सामन्य से कम हो जाने की स्थिति में वायुदाबब सामान्य से अधिक विकसित हो जाता है। इसके कारण यहाँ से पवनों को धकेलने वाला बल शक्तिशाली हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप भारत में मानसून के शीघ्र आने एवं बलवती होने की सम्भावनाएँ व्यक्त की जाती है।
ऐसा माना गया है कि एल नीनो की परिस्थितियाँ विकसित होने पर भारत में मानसून की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है। इसके विपरित ला नीनो की परिस्थितियाँ विकसित होने पर भारत में मानसून की सक्रियता बढ़ जाती है।
कुछ अन्य जानकारी
एल नीनो-ला नीना परिकल्पना
एल निनो एक जएिल मौसम तंत्र है, जो हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ़ और मौसम की चरम अवस्थाएँ आती है।
पूर्वी प्रशांत महासागर में यह पेरू के तट के निकट उष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है। इससे भारत सहित अनेक स्थानों का मौसम प्रभावित होता है। एल निनो भूमध्यरेखीय उष्ण समुद्री धारा का विस्तार मात्र है, जो अस्थायी रूप से ठंडी पेरूवियन अथवा हम्बोल्ट धारा पर प्रतिस्थापित हो जाती है। यह धारा पेरू तट के जल का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है। इसके निम्नलिखित परिणाम होते हैं।
- भूमध्यरेखीय वायुमंडलीय परिसंचरण में विकृति
- समुद्री जल के वाष्पन में अनियमितता
- प्लवक की मात्रा में कमी, जिससे समुद्र में मछलियों की संख्या का घट जाना
El Nino & La Nina
कुछ मौसम विज्ञान शास्त्रियों ने भारतीय मानसून की प्रक्रिया में दक्षिण प्रशान्त महासागर में पेरू तट के निकट महासागरीय तापमान की परिस्थितियों को महत्त्वपूर्ण निर्धारक कारक माना है। इन वैज्ञानिकों के अनुसार क्रिसमस के आस-पास दक्षिणी प्रशान्त महासागर में पेरू के तट के निकट महासागरीय जल के तापमान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ये परिस्थितियाँ तापमान के सामान्य से 2डिग्री से 4डिग्री सेल्शियस तक अधिक या कम हो जाने से बनती है। सामान्य से अधिक तापमान हो जाने की स्थिति को एल नीनो प्रभाव कहा जाता है। सामान्य से कम तापमान हो जाने की परिस्थिति को ला नीना प्रभाव कहा जाता है।
एल नीनों की परिस्थितियाँ विकसित होने पर भारत में मानसून की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है। इसके विपरीत ला नीना की परिस्थितियाँविकसित होेने पर भारत में मानसून की सक्रियता बढ़ जाती है।
तो दोस्तो आज के आर्टिकल में हमने एल नीनो के बारे में जानकारी प्राप्त की। और साथ ही ला नीना को भी अच्छे से समझा। अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तो के साथ शेयर करें। और इसी तरह की बेहतरीन जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहो।
धन्यवाद !
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