हैल्लो दोस्तो, तो आज के आर्टिकल में हम ब्रायोफाइटा (Bryophyta in Hindi) के बारे में जानकारी प्राप्त करने वाले है कि ब्रायोफाइटा क्या है ? ब्रायोफाइटा के कौन-कौन से प्रकार है ? ब्रायोफाइटा का आर्थिक महत्त्व क्या है ? ब्रायोफाइटा के गुण कौन-कौनसे है ? ब्रायोफाइटा के लक्षण इत्यादि के बारे में विस्तार से अध्ययन करने वाले है। तो चलिए दोस्तो बढ़ते है आज के आर्टिकल की ओर। (Bryophytes in Hindi)
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ब्रायोफाइटा क्या है ? (Bryophyta in Hindi)

दोस्तो, ब्रायोफाइटा भ्रूण बनाने वाले पौधों, एम्ब्रियोफाइटा का सबसे साधारण व आद्य समूह है। इनमें संवहन ऊतक तथा वास्तविक जड़ों का अभाव होता है। जड़ों के स्थान पर मूलाभास पाये जाते है। अधिकतर ब्रायोफाइटा में क्लोरोफिल पाया जाता है, जिससे वे स्वपोषी होते हैं। इनमें लैंगिक तथा अलैंगिक दोनों प्रकार का जनन होता है। इनके पौधे प्रायः छोटे होते हैं। सबसे बड़ा ब्रायोफाइटा का पौधा डासोनियाँ है जिसकी ऊँचाई 40 से 70 सेमी. है।
इस समुदाय का पौधा युग्मकोद्भिद् होता है। इन पौधों की पीढ़ी एकान्तरण स्पष्ट होता है। इनमें से एक अगुणित गैमिटोफाइट होती है तथा दूसरी द्विगुणित स्पोरोफाइट होती है। ये पौधे स्थली होने के साथ ही छायादार स्थानों पर उगते हैं और इन्हें अपने जीवन में पर्याप्य आर्द्रता की आवश्यकता होती है, निषेचन के लिये जल आवश्यक है। अतः कुछ वैज्ञानिक ब्रायोफाइटा समुदाय को वनस्पति जगत् का एम्फीबिया कहते हैं। ये पौधे थैलेफाइटा से अधिक विकसित होते हैं। प्रोफेसर एस.आर.कश्यप को भारतीय ब्रायोफाइटा विज्ञान का जनक कहा जाता है।
ब्रायोफाइटा के वर्ग (Bryophyta Classes in Hindi)
ब्रायोफाइटा को तीन वर्गों में बाँटा गया है-
- हिपैटिसी या लिवरवर्ट
- मसाई
- एन्थोसिरोटी।
हिपैटिसी या लिवरवर्ट (Hepaticae)
वर्ग हिपैटिसी : इस वर्ग के पौधों का शरीर यकृत के समान हरे रंग का होता है। इसलिए इसे लिवरवर्ट्स भी कहते हैं। पौधों के शरीर को सूकाय कहते हैं। वह चपटा होता है। सूकाय में जड़, तना, पत्तियाँ नहीं होती है। इसकी निचली सतह के अनेक एककोशिकीय मूलांग निकले होते हैं। मूलांग का कार्य स्थिरता प्रदान करना तथा भूमि से पानी एवं खनिज लवणों का अवशोषण करना है।
जैसे : रिक्सिया तथा मार्केन्शिया आदि।
मसाई (Musci)
वर्ग मसाई : इसमें उच्च उच्च श्रेणी के ब्रायोफाइट्स आते हैं। ये ठण्डे एवं नम स्थानों पर तथा पुरानी दीवारों पर समूहों में पाए जाते हैं। इसमें तना तथा पत्ती जैसी रचना पाई जाती है। मूल की जगह पर बहुकोशिकीय मूलांग होते हैं। माॅस का पौधा युग्मकोद्भिद् होता है। इसका बीजाणुद्भिद् आंशिक रूप से युग्मकोद्भिद् पर निर्भर रहता है।
जैसे : माॅस में।
एन्थोसिरोटी (Anthocerotae)
वर्ग एन्थोसिरोटी : इन पौधों का शरीर सूकायक होता है। इनके बीजाणुद्भिद् में सीटा अनुपस्थित होता है।
जैसे : एन्थोसिराॅस में।
ब्रायोफाइटा के आर्थिक महत्व (Economic Importance of Bryophyta in Hindi)
- ब्रायोफाइटा के पौधे मृदा अपरदन को रोकने में सहायक होते हैं।
- जल अवशोषण की क्षमता अधिक होने के कारण ये बाढ़ रोकने में मदद करते हैं।
- स्फैगनम माॅस का प्रयोग ईंधन के रूप में करते हैं। इसे पीट ऊर्जा कहते है।
- एस्किमो स्फैगनम का प्रयोग चिराग में बत्ती की जग करते हैं।
- पूर्तिरोधी अर्थात् ऐण्टिसेप्टिक होने के कारण स्फैगनम का उपयोग सर्जिकल ड्रेसिंग के लिए किया जाता है। स्फैगनम के पौधों से स्फैगनाॅनाल नामक प्रतिजैविक प्राप्त किया जाता है।
- स्फैगनम की कुछ जातियाँ पैकिंग पदार्थ के रूप में प्रयोग में आती हैं।
ब्रायोफाइटा के गुण (Properties of Bryophyta in Hindi)
स्पष्ट है कि शैवालों की तुलना में ब्रायोफाइटा विकास के मार्ग पर एक कदम आगे हैं। ब्रायोफाइटा स्थल पर ‘अतिक्रमण’ करके स्थल पर जीवन-यापन करने में सफल रहे हैं। उनमें से कुछ ऐसे गुण विकसित हुए जिनसे वे अपने को स्थलीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाल सके। ऐसे कुछ गुण निम्नलिखित हैं :
- संहत शरीर का विकास
- जल अवशोषित करने तथा आधार पर संलग्न होने के लिए विशिष्ट अंगों जैसे मूलाभासों का विकास
- जननांगों की सुरक्षा
- वातावरण से गैस विनिमय
- उत्तरजीविता की सम्भावनाओं में वृद्धि हेतु बीजाणुओं का बड़ी संख्या में उत्पादन।
ब्रायोफाइटा के लक्षण (Symptoms of Bryophyta in Hindi)
Bryophyta ke lakshan in Hindi
- परन्तु ब्रायोफाइटा पौधे भी स्थल पर जीवन-यापन के लिए अधिक अनुकूलित नहीं है।
- ये केवल नम तथा छायादार स्थानों पर ही रह सकते हैं।
- उनमें जल तथा भोजन के स्थानान्तरण के लिए कोई संवहन तन्त्र नहीं होता।
- उनमें ‘वास्तविक’ जड़ों का अभाव होता है (केवल मूलाभासों द्वारा ही आधार से संलग्न रहता है। जल तथा खनिज लवणों का अवशोषण शरीर के लगभग अधिकांश भाग से होता है।)।
- पौधे की सतह पर क्यूटिकिल का अभाव होता है। (जिसके फलस्वरूप पौधे से पानी के वाष्पीकरण का विशेष प्रतिबन्ध नहीं रह पाता तथा जल की अत्यधिक हानि होती है ऐसी स्थिति का उनकी वृद्धि पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।)
कारणस्वरूप स्थल पर पौधों का और अधिक विकास तभी संभव हुआ, जब उनमें संवहनी ऊतक का विकास हो गया। वास्तव में, पौधों में संवहन तन्त्र की जड़ से जल तथा खनिज लवणों को पत्ती तक तथा पत्ती से शर्करा को पौधे की अन्य कोशिकाओं तक पहुँचाने का कार्य करता है। फलतः ट्रैकियोफाइटा का विकास संभव हुआ।
ब्रायोफाइटा से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1 : सबसे छोटा ब्रायोफाइटा कौन-सा है ?
उत्तर: जूओप्सिस
प्रश्न 2 : सबसे बड़ा ब्रायोफाइटा का पौधा कौन-सा है ?
उत्तर: डासोनियाँ
प्रश्न 3 : सबसे बड़ा ब्रायोफाइटा की लम्बाई कितनी है ?
उत्तर: ऊँचाई 40 से 70 सेमी.
प्रश्न 4 : ब्रायोफाइटा में किस प्रकार का जनन पाया जाता है ?
उत्तर: लैंगिक और अलैंगिक दोनों प्रकार का
प्रश्न 5 : वनस्पति जगत् का एम्फीबिया किसे कहते है ?
उत्तर: ब्रायोफाइटा
प्रश्न 6 : भारतीय ब्रायोफाइटा विज्ञान का जनक किसे कहा जाता है ?
उत्तर: प्रोफेसर एस.आर.कश्यप को
प्रश्न 7 : किस ब्रायोफाइटा पौधे के जीवाश्मीकरण से पीट कोयले जैसा ईंधन बनता है ?
उत्तर: स्फैगनम से
प्रश्न 8 : लिंगीय दृष्टि से ब्रायोफाइटा होते हैं –
उत्तर: मोनोएसियस अर्थात् नर व मादा जननांग एक ही पौधे में पाये जाते हैं।
प्रश्न 9 : ब्रायोफाइटा का विशिष्ट लक्षण क्या है ?
उत्तर: संवहन ऊतकों अर्थात् जाइलम एवं फ्लोएम का अभाव।
तो दोस्तों आज हमने ब्रायोफाइटा (Bryophyta in Hindi) के बारे में विस्तार से अध्ययन किया। अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी। तो इसे अपने दोस्तो के साथ शेयर करें और काॅमेन्ट में अपना कीमती सुझाव देवें। और इसी प्रकार की बेहतरीन जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहें। हमारे द्वारा इस तरह की जानकारी हर रोज इस वेबसाइट पर दी जाती है।
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