हेल्लो दोस्तो आज के इस आर्टिकल में हम कोशिका विभाजन (Cell Division in Hindi) क्या है ? और कोशिका विभाजन के प्रकार के बारे में अध्ययन करने वाले है ? तो चलिए बढ़ते है। आज के आर्टिकल की ओर…
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कोशिका विभाजन (Cell Division in Hindi)
मातृ कोशिका से पुत्री कोशिकाओं के निर्माण की क्रिया को कोशिका विभाजन कहते है। कोशिका बनने से लेकर इसके विभाजन द्वारा संतति कोशिका बनने तक होने वाली सारी प्रक्रियाओं को कोशिका चक्र कहते है। ‘हावर्ड और पेल्फ’ ने कोशिका चक्र को चार चरणों में विभाजित किया है।
- G1-अवस्था
- G2-अवस्था
- S-अवस्था
- M-अवस्था
- G1-अवस्था: आरएनए तथा आवश्यक प्रोटीन संश्लेषण
- S-अवस्था: डीएनए संश्लेषण की अवस्था
- G2-अवस्था: विभाजन की तैयारी
- M-अवस्था: इस अवस्था में कोशिका का विभाजन होता है।
इसे पुनः निम्न चरणों में विभक्त करते है।
- प्रोफेज
- मेटाफेज
- टीलोफेज
- साइटोकाइनेसिस
अन्तरावस्था
G1, S एवं G2 अवस्था को सम्मिलित रूप से इन्टरफेज कहते हैं, जो दो विभाजन के मध्य की अवस्था है। अर्थात् इस अवस्था में कोशिका उपापचयी क्रियाओं द्वारा विभाजन की तैयारी करती है।
माइटोटिक प्रावस्था
इसे M फेज भी कहते है। इसमें केन्द्रक एवं कोशिक द्रव्य का बँटवारा होता है। केन्द्रक का विभाजन कैरियोकाइनेसिस तथा कोशिका विभाजन साइटोकाइनेसिस कहलाता है।
हमें ज्ञात है कि कोशिका विभाजन से पहले डी.एन.ए का द्विगुणन और फिर केन्द्रक तथा कोशिका द्रव्य का विभाजन होता है।
कोशिका विभाजन के प्रकार
कोशिका विभाजन प्रमुख रूप से तीन प्रकार का होता है –
- असूत्री-विभाजन
- सूत्री-विभाजन
- अर्द्धसूत्री-विभाजन
असूत्री विभाजन या एमाइटोसिस
असूत्री विभाजन में पहले मातृ कोशिका केन्द्रक सीधे दो भागों में बँट जाता है। इसके ठीक बाद कोशिका-द्रव्य में संकुचन होने लगता है और कोशिका द्रव्य भी बँट जाता है। इस प्रकार के कोशिका विभाजन में किसी प्रकार की केन्द्रकीय घटनायें नहीं पायी जाती है। यह अविकसित कोशिकाओं जैसे – जीवाणु, नीलहरित शैवाल, यीस्ट, अमीबा तथा प्रोटोजोआ में होता है।
सुत्री विभाजन
कोशिका विभाजन की इस प्रक्रिया की खोज वाल्टर फ्लैमिंग ने 1882 में की थी। यह विभाजन कायिक कोशिकाओं में होता है। इस विभाजन के दो मुख्य भाग होते है।
- केन्द्रक का विभाजन
- कोशिकाद्रव्य का विभाजन
(क) केन्द्रक का विभाजन
इसे दो भागों में बाँटा गया है।
- अन्तरावस्था
- विभाजन प्रावस्था
अन्तरावस्था में सम्पूर्ण-विभाजन चक्र का लगभग 90-95प्रतिशत समय लगता है। केवल 5-10प्रतिशत समय ही शेष विभाजन की प्रावस्थाओं में लगता है।
विभाजन प्रावस्था में केन्द्रक में शृंखलाबद्ध अनेक परिवर्तन होते है, जिनको चार प्रावस्थाओं में बाँटा गया है। जो निम्न प्रकार है –
- प्रोफेज : केन्द्रक कला एवं केन्द्रिक का लुप्त होन, स्पैन्डिल फाइबर का निर्माण एवं क्रोमैटिड्स का दृष्टिगोचर होना इसका प्रमुख लक्षण है।
- मेटाफेज : क्रोमैटिड्स का मेटाफेज प्लेट पर सेन्ट्रोमीयर से जुड़ना।
- एनाफेज : क्रोमैटिड्स का विभाजन
- टिलोफेज : केन्द्रक कला एवं केन्द्रिक का प्रकटीकरण और दो केन्द्रक का निर्माण
(ख) टिलोफेज के समय ही कोशिका के मध्य में कोशिका प्लेट का निर्माण होकर कोशिका द्रव्य विभाजित हो जाता है। फलतः दो संतति कोशिका का निर्माण हो जाता है।
इस प्रकार के विभाजन से आनुवंशिक स्थायित्व बना रहता है। जाइगोट में इसी प्रकार का विभाजन होता है, जिससे बहुकोशिकीय रचना का निर्माण होता है। शरीर में घावों का भरना तथा अंगों को सूत्री विभाजन के ही परिणामस्वरूप होता है।
अर्धसूत्री विभाजन
अर्द्धसूत्री विभाजन सदैव द्विगुणित कोशिका में ही होता है। ‘फार्मर’ एवं ‘मूरे’ ने सर्वप्रथम 1905 ई. में मिओसिस की खोज की। इसमें केन्द्रक व कोशिकाद्रव्य के दो बार विभाजन सम्मिलित है। इन दो बार के विभाजनों में से पहला विभाजन-मिओसिस प्रथम या ह्वास विभाजन कहलाता है, जिसमें गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित से अगुणित हो जाती है। दूसरा विभाजन – मिओसिस द्वितीय साधारण समसुत्री विभाजन की भाँति ही होता है। इसमें गुणसूत्र के अर्द्धगुणसूत्रों का बँटवारा होता है। अतः इसे समविभाजन भी कहते है। मिओसिस के अन्त में चार अगुणित कोशिकाएँ होती है।
यह विभाजन केवल लिंगी जनन करने वाले जीवों में होता है। यह परागकणों, बीजाण्ड या बीजाणु धानी में होता है। इसमें सूत्री विभाजन के समान G1, S व G2 उपअवस्थाएँ होती है। इसके बाद यह दो भागों में बंटती है – मिओसिस-1 और मिओसिस-2
Cell Division in Hindi
मिओसिस प्रथम में गुणसूत्रों का ह्यस होता है। इस विभाजन की प्रमुख निम्नलिखित प्रावस्थाएँ होती है –
- प्राफेज अत्यन्त जटिल, लम्बी तथा महत्वपूर्ण प्रावस्था है। अतः इसे अधोलिखित अवस्थाओं में विभक्त किया गया है। यथा –
(क) लेप्टोटीन: विभाजन की तैयारी।
(ख) जाइगोटीन: समजात गुणसूत्र जोड़े बनाते है; जिसे सूत्र युग्मन कहते है।
(ग) पैचीटीन: अर्द्धगुणसूत्रों में विनिमय अर्थात् क्राॅसिंग ओवर होना।
(स) डिप्लोटीन: टेट्रावैलेण्ट स्थिति में क्याजमेटा पर अर्द्धगुणसूत्र टुकड़ों का आदान-प्रदान।
(द) डायकाइनेसिस : क्रोमोसोम का अलगाव, केन्द्रक कला एवं केन्द्रिक का लुप्त होना। - मेटाफेज प्रथम : टेट्राबैलेण्ट अवस्था में गुणसूत्र के सेन्ट्रोमीयर का मेटाफेज प्लेट से जुड़ना।
- एनाफेज प्रथम : गुणसूत्रों का विपरीत ध्रवों की ओर खिसकना।
- टीलाफेज प्रथम : गुणसूत्रों का ध्रुवों पर एकत्र होना, केन्द्रक कला एवं केन्द्रिक का स्पष्ट होना।
तदोपरान्त कोश्किा प्लेट के निर्माण द्वारा कोशिका द्रव्य दो भागों में बँट जाता है (साइटोका-इनेसिस)।
मिओसिस द्वितिय का विभाजन सूत्री विभाजन के समान होता है। अन्ततः मिओसिस के पूर्ण होने पर चार अगुणित संतति कोशिकाएँ बनती है। निषेचन के समय नर और मादा गैमिटों के मिलने से क्रोमोसोम्स की संख्या जाइगोट में पुनः द्विगुणित हो जाती है।
तो दोस्तो आज हमने कोशिका विभाजन (Cell Division in Hindi) को संक्षिप्त में जाना। हम इसके बारे में आगे के आर्टिकल में विस्तार से भी चर्चा करेंगें। मुझे आशा है कि आपको यह आर्टिकल पंसद आया होगा। अगर आपको आर्टिकल पंसद आया। तो इसे अपने दोस्तो के साथ शेयर करें। और हमारे साथ बने रहें।
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