चोक कुंडली क्या है – Chok Kundli Kya Hai परिभाषा, सिद्धान्त, कार्यविधि, सिद्धान्त – Choke Coil in Hindi

Choke Coil in Hindi

नमस्कार दोस्तों आज के आर्टिकल में हम प्रत्यावर्ती धारा में चोक कुंडली(Chok Kundli Kya Hai) के बारे में अध्यनन करने वाले है। जिसमें हम जानेंगें कि चोक कुंडली की परिभाषा क्या है, संरचना किस प्रकार है, चोक कुंडली किस प्रकार कार्य करती है और किस सिद्धान्त पर कार्य करती है, चोक कुंडली में ऊर्जा का क्षय किस प्रकार होता है ओर इसका उपयोग क्या है आदि सभी बातों के बारे में विस्तार से चर्चा करने वालें है। तो चलिए बढ़तें है आज के आर्टिकल की ओर…

चोक कुंडली क्या है – Chok Kundli Kya Hai

chok kundli kya hai
Chok Kundli

जब किसी परिपथ में दृष्टि धारा प्रवाहित की जाती है तो इस धारा को नियंत्रित करने के लिए प्रतिरोध (R) का उपयोग किया जाता है। जिसके कारण विद्युत ऊर्जा का क्षय ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में होने लगता है। तो इसीप्रकार यदि हम प्रत्यावर्ती परिपथ में भी प्रतिरोध (R) का उपयोग करतें है तो प्रत्यावर्ती परिपथ में भी विद्युत ऊर्जा का क्षय ऊष्मीय ऊर्जा में होता है। इसलिए धारा नियंत्रण के लिए उच्च प्रेरकत्व (L) का उपयोग करतें है, चूँकि यह भी प्रतिबाधा का कार्य ही करता है, जिसका प्रतिरोध नगण्य या शून्य ही होता है। इसलिए प्रेरकत्व (L) का उपयोग प्रत्यावर्ती धारा में प्रतिरोध के रूप में किया जाता है। जो चोक कुंडली(Choke Coil) कहलाती है।

चोक कुंडली की बनावट – Choke Coil in Hindi

चोक कुंडली बनाने के लिए एक नर्म लोहे का क्रोड़ लिया जाता है। जिस पर ताँबें की विद्युतरोधी तार को पास-पास करके लपेटा जाता है। इस ताँबें की तार में प्रतिरोध नगण्य हो इसलिए इसके तार को मोटा रखा जाता है। उपयोग में लाने वाले नर्म लोहे का क्रोड़ पटलित बनाया जाता है जिससे भंवर धारा का मान कम हो जाता है और प्रतिरोध बढ़ जाता है। इसलिए नर्म लोहे के क्रोड़ को पटलित करके ही उस पर ताबें की तार को लपेटा जाता है।

लोहे की इस क्रोड को परिपथ में आगे या पीछे खिसकाया भी जा सकता है जिससे स्व प्रेरकत्व का मान बदल जाता है और इसके बदलने पर यह धारा के मान को नियंत्रित करने लगता है।

इसके अतिरिक्त में प्रत्यावर्ती धारा स्रोत्र और एक बल्व का उपयोग भी किया जाता है। इस प्रकार चोक कुंडली बनी होती है।

जैसा कि हमारे घरों में प्रकाश के लिए ट्यूब्लाइट का उपयोग तो होता ही है, जिसमें भी धारा को नियंत्रित करने के लिए एक छोटा सा चोक कुंडली का उपयोग किया जाता है, जिसे श्रेणी क्रम में रखा जाता है। जिससे धारा के कम या ज्यादा होने पर चोक कुंडली धारा को नियंत्रित करती है।

चोक कुंडली की परिभाषा

‘‘किसी प्रत्यावर्ती धारा में धारा को नियंत्रित करने के लिए उच्च प्रेरकत्व तथा नगण्य प्रतिरोध की कुंडली को चोक कुंडली कहतें है।’’

चोक कुंडली की संरचना

दोस्तों जब नर्म लोहे की क्रोड को पटलित बनाकर ताबें की विद्युतरोधी पटलित तार को बड़ी मात्रा में पास-पास करके उस पर लपेटा जाता है तो चोक कुंडली का निर्माण होता है। जिसमें लोहे की क्रोड को आगे या पीछे भी खिसकाया जा सकता है।

चोक कुंडली की संरचना
चोक कुंडली की संरचना

चोक कुंडली का कार्य सिद्धान्त

माना कुंडली का स्वप्रेरकत्व L तथा प्रतिरोध R है। तब परिपथ की प्रतिबाधा

Z=\sqrt{R^{2}+X_{L}^{2}}

Z=\sqrt{R^{2}+\left ( \omega L \right )^{2}}

उपरोक्त सूत्र में L का मान अधिक होने पर प्रतिबाधा का मान अधिक होगा और प्रतिबाधा अधिक होने से धारा का मान कम हो जाता है।

चूँकि हम जानतें है कि धारा I=\frac{V}{R} होता है।

जहाँ हम R की जगह जेड़ का उपयोग कर सकतें है अतः

I=\frac{V}{Z}

यहाँ धारा के मान को नियंत्रत करने के लिए स्वप्रेरकत्व का मान अधिक होना चाहिए तभी धारा का मान कम होगा।

चोक कुंडली किस सिद्धान्त पर कार्य करती है ?

दोस्तों चोक कुंडली वाटहीन धारा के सिद्धान्त पर कार्य करती है। अगर आपको नहीं पता कि वाटहीन धारा क्या है तो चलिए इसके बारे में भी संक्षिप्त में जानकारी प्राप्त कर लेतें है।

वाटहीन धारा की परिभाषा

‘‘जब शुद्ध प्रेरकत्व और शुद्ध संधारित्र युक्त परिपथ में ओमीय प्रतिरोध R का मान शून्य हो, तब उस परिपथ में धारा प्रवाहित करने पर उसकी औसत शक्ति शून्य हो जाती है तथा ऊर्जा का क्षय बिल्कुल भी नहीं होता है, उसे ही वाटहीन धारा कहतें है।’’ इसी सिद्धान्त पर ही चोक कुंडली कार्य करती है।

P_{av}=0

अभी हम जानने वालें है कि औसत शक्ति का मान शून्य कैसे होता है। जिससे आप चोक कुंडली की गणितिय व्याख्या को ओर अच्छे से समझ पाएगें।

वाटहीन धारा में औसत शक्ति का मान शून्य कैसे होता है ?

शुद्ध प्रेरकत्व युक्त ए.सी. परिपथ में बोल्टता और धारा के मध्य 90 डिग्री का कलान्तर होता है।

अतः औसत शक्ति

P_{av}=V_{rms}\times I_{rms}\times Cos\phi

P_{av}=V_{rms}\times I_{rms}\times Cos90^{o}

P_{av}=V_{rms}\times I_{rms}\times 0

P_{av}=0

इस प्रकार चैक कुंडली में व्यय औसत शक्ति शून्य होती है।

क्रोड को कुंडली के अन्दर आगे-पीछे खिसकाने से स्वप्रेरकत्व का मान बदल जाता है। इस प्रकार चोक कुंडली का उपयोग करके, बिना ऊर्जा व्यय के प्रत्यावर्ती धारा को नियंत्रित किया जा सकता है।

चोक कुंडली में ऊर्जा क्षय

दोस्तों जैसा कि हमने पूर्व में पढ़ा कि चोक कुंडली का ऊर्जा क्षय बिल्कुल नगण्य होता है परन्तु निम्न कारकों कि कारण भी ऊर्जा क्षय होता है, तो चलिए जानते है आखिर ये कारक कौन-कौन से है:

  • दोस्तों हम जानते है कि कुंडली का ओमीय प्रतिरोध शून्य होना चाहिए। परन्तु व्यवहार में ऐसा संभव नहीं है। इसलिए कुंडली का ओमीय प्रतिरोध शून्य करने के लिए कुंडली पर मोटे ताँबें की तार को लपेटा जाता है ताकि अधिक मोटे ताँबें की तार से ओमीय प्रतिरोध शून्य हो जाए।
  • जब कुंडली के क्रोड में भंवर धारा उत्पन्न होती है तब विद्युत ऊर्जा का ऊष्मीय ऊर्जा के रूप में क्षय होता है। इसलिए नर्म लोहे की क्रोड को पटलित बनाया जाता है जिससे भंवर धारा के उत्पन्न होने का मान कम हो जाता है और ऊर्जा क्षय नगण्य हो जाता है।

चोक कुंडली का उपयोग

दोस्तों चोक कुंडली का उपयोग मरकरी लैम्प और ट्यूबलाइट में श्रेणी क्रम में रखकर किया जाता है। जिससे चोक कुंडली लैम्प या ट्यूबलाइट में धारा को नियंत्रित करती है और इन्हें फ्यूज होने से बचा लेती है। इस प्रकार हमारी ट्यूबलाइट या मकरी लैम्प सुरक्षित रहतें है।

तो दोस्तों आज के आर्टिकल में हमने चोक कुंडली(Chok Kundli Kya Hai) के बारे में विस्तार से चर्चा की। अगर आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह आर्टिकल अच्छा लगा तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें तथा इसी तरह की बेहतरीन जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़ें रहें। अगर आपका कोई प्रश्न है तो आप नीचे काॅमेन्ट बाॅक्स में पूछ सकतें है। हम आपके प्रश्न का उत्तर अवश्य देंगें।

धन्यवाद !

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