संक्रामक रोग – Infectious Diseases in Hindi – जीवाणु, वाइरस, प्रोटोजोआ, कृमि एवं कवक जनित रोग

संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Hindi)

हैल्लो दोस्तो आज हम संक्रामक रोगों (Infectious Diseases) के बारे में विस्तार से चर्चा करने वाले है। जिसमें हम विभिन्न संक्रामक रोगों और संक्रामक कारकों एवं उपचारों का अध्ययन करने वालें है। साथ ही अन्त में कुछ संक्रामक रोगों (Infectious Diseases in Hindi) से संबंधित परीकक्षोपयोगी प्रश्नों का अध्ययन भी करेंगें। तो चलिए बढ़ते है आज के आर्टिकल की ओर।

Table of Content

संक्रामक रोग (Infectious Diseases in Hindi)

Infectious Diseases in Hindi
Infectious Diseases in Hindi

संक्रामक रोग हानिकारक सूक्ष्म जीवों (रोगाणुओं) के कारण होता है, उदाहरण: जीवाणु, विषाणु, कृमि, कवक एवं प्रोटोजोआ। रोग कारक जीव का संचरण वायु, जल, भोजन, रोगवाहक कीट तथा शारीरिक सम्पर्क के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में होता है। इसीलिए इन्हें संचरणीय या संक्रामक रोग कहते हैं। संक्रामक अभिकर्ता की प्रकृति के आधार पर संक्रामक रोगों को अधोलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है। यथा –

  1. जीवाणु जनित रोग
  2. वाइरस जनित रोग
  3. प्रोटोजोआ जनित रोग
  4. कृमि जनित रोग
  5. कवक जनित रोग

जीवाणु जनित रोग (Bacterial Disease in Hindi)

  1. हैजा – विब्रियो कोलेरी
  2. डिफ्थीरिया – काॅरिनबैक्टीरियम डिफ्थेरिआई
  3. क्षय रोग – माइकोबैक्टीरियम टयूबरकुलोसिस
  4. कोढ़ – माइकोबैक्टीरियम लैप्रोसी
  5. टिटेनस – क्लोस्ट्रीडियम टिटेनी
  6. टायफाॅइड – साल्मोनेला टायफोसा
  7. प्लेग – पाश्चुरेला पेस्टिस
  8. काली खांसी – बोर्डीटेला परटूसिस
  9. न्यूमोनिया – डिप्लोकोकलन्यूमानी
  10. गोनोरिआ – निसेरिया गोनोरहीआ
  11. सिफिलिस – ट्रेपोनेमा पैलिडियम
  12. सूजांक – गोनोकाकस गोनोराही

वाइरस जनित रोग (Viral Disease in Hindi)

  1. छोटी माता – वैरिसेला वाइरस
  2. खसरा – मोर्बिली वाइरस
  3. पोलियो – पोलियो वाइरस
  4. रेबीज – रेबीज वाइरस
  5. चेचक – वैरिओला वाइरस
  6. जननांग हर्पिस – हर्पिस वाइरस
  7. एड्स – ह्यूमन इम्यून, डेफिशिएन्सी वाइरस
  8. हिपेटाइटिस – हिपेटाइटिस वाइरस
  9. इंफ्लुएन्जा – मिक्सोबाइरस इंफ्लुएॅजाइ
  10. गलसुआ – मम्पस वाइरस
  11. ट्रेकोमा – वाइरस
  12. जेनाइटल हर्पिस – सिम्पलैक्सवेजिनेलिस

प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoan Disease in Hindi)

  1. मलेरिया – प्लाज्मोडियम वाइबैक्स
  2. अमीबिएसिस – एण्टअमीबा
  3. काला-जार – लीशमैनिया (बालू मक्खी के काटने से)
  4. पाइरिया – एण्ट अमीबा जिन्जिवेलिस
  5. सोने की बीमारी – ट्रिपेनोसोमा

कृमि जनित रोग (Worm Disease in Hindi)

  1. फाइलेरिएसिस – वऊचेरिया बैक्रोफ्टाई
  2. टीनिएसिस – टीनिया सोलियम
  3. ऐस्कोरिएसिस – ऐस्केरिस लुम्ब्रीकाॅइडिस

कवक जनित रोग (Fungal Disease in Hindi)

  1. एथलीट फुट – ट्राइकोफाइटोन
  2. खाज – एकेरस स्केबीज
  3. दाद – ट्राइकोफाइटान

प्रमुख रोगों द्वारा प्रभावित अंग (Organ affected by major Diseases)

  1. न्यूमोनिया – फेफड़े
  2. केटरेक्ट – आँखें
  3. ट्रेकोमा – आँखें
  4. डिप्लोपिया – आँखें
  5. कंजक्टिवाइटिस – आँखें
  6. कोलाइटिस – छोटी व बड़ी आंत
  7. मिर्गी – नाड़ी तंत्र
  8. रिकेटस – हड्डियाँ
  9. टी.बी. – फेफड़े
  10. पीलिया – यकृत
  11. डायबिटिस – अग्नाशय
  12. एक्जिमा – त्वचा
  13. अस्थमा – श्वासनली
  14. पैरालिसिस – नाड़ी
  15. पोलियो – नाड़ी, हाथ, पैर
  16. टाइफाइड – आँत
  17. स्कर्वी – दाँत, मसूढ़ें
  18. ग्वाइटर – गला
  19. मोतियाबिन्द – आँख
  20. आर्थराइटिस – जोड़
  21. डिप्थीरिया – गला
  22. मैनिन्जाइटिस – मस्तिष्क
  23. पायरिया – दाँत
  24. इन्सेफेलाइटिस – मस्तिष्क
  25. रतौंधी – आँख
  26. मलेरिया – रक्त कोशिका
  27. फाइलेरिया – लसीका पर्व
  28. श्वेत रक्ता – अस्थि मज्जा

जीवाणु जनित रोग (Bacterial Disease in Hindi)

हैजा क्या है ?

यह रोग विब्रियो कोलेरी नामक जीवाणु से होता है जो कि जल, खाद्य पदार्थो तथा मक्खियों द्वारा तेजी से फैलता है। उल्टी एवं दस्त इस रोग के विशिष्ट लक्षण हैं। दस्त पतले (पानी जैसे) तथा सफेद रंग लिए होते हैं। दस्तों तथा उल्टियों के कारण जल की कमी हो जाती है, पेशाव बन्द हो जाता है, हाथ पैरों में ऐंठन हो जाती है तथा रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।

हैजा रोग का उपचार

ठंडी वस्तुएँ, जैसे अमृतधारा तथा हैजे का टीका रोगी को दिया जाना चाहिए। साथ ही यह सावधानी रखनी चाहिए कि पानी को उबालकर एवं शुद्ध करके पीये, रोगी के दस्त एवं उल्टियों पर मिट्टी डालकर कीटाणुनाशक दवा छिड़क दें तथा बाजार के खाद्य पदार्थ (विशेषकर बिना ढँके) नहीं खायें।

डिप्थीरिया क्या है ?

यह रोग काॅरिनबैक्टीरियम डिफ्थीरिआई नामक जीवाणु से होता है। यह खाने की वस्तुओं द्वारा बच्चों में (विशेषकर 3-5 वर्ष के बच्चों में) अधिक होता है, परन्तु वयस्कों में भी यह रोग हो सकता है। जीवाणु गले में एक सफेद झिल्की बनाकर श्वास नलिका को रूद्ध कर देते हैं, तेज बुखार तथा हृदय व मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

डिप्थीरिया रोग का उपचार

ग्रसित रोगी को अलग कमरे में रखना चाहिए और एण्टीसीरम का इन्जेक्शन लगवाना चाहिए। बच्चों को DPT नामक टीका लगवाना चाहिए, जो इन्हें डिफ्थीरिया, टिटनेस एवं कुकुर खाँसी से बचाता है।

क्षयरोग क्या है ?

यक एक संक्रामण रोग है जो माइकोबैक्टिरियम टयूबरकुलोसिस नामक जीवाणु से होता है। इस रा को यक्ष्मा या काक रोग भी कहते है। 1882 में जर्मन वैज्ञानिक रार्बटकोच ने टी.बी. जीवाणु की खोज की। ये जीवाणु मुँह से थूकते समय या चूमने से प्रसारित होते है।

इसमें रोगी को इल्का ज्वर तथा खाँसी आती है। बलगम काफी बढ़ जाता है। थकान एवं कमजोरी का अनुभव होता है। बलगम के साथ खून आने लगता है। भूख लगनी बन्द हो जाती है। यदि अब भी चिकित्सा न की जाय, तो धीरे-धीरे कमजोर होकर रोगी की मृत्यु हो जाती है।

यही जीवाणु जब लिम्फेटिक ग्रंथियों में घुसते हैं तो ग्रंथियों की क्षय तथा कण्ठमाला उत्पन्न कर देते है। आंतों में आन्त्र क्षय, मस्तिष्क में मस्तिष्क क्षय तथा अस्थियों में अस्थि क्षय उत्पन्न कर देते हैं।

क्षयरोग का उपचार

उपचार हेतु घर के कमरों की स्वच्छ रखना चाहिए, इनमें वायु व सूर्य के प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। रोगी के सम्पर्क से बचाना चाहिए। बच्चों को B.C.G. (बौसिलस कैलेमिटि ग्यूरीन) का टीका अवश्य लगाना चाहिए। डाॅक्टर की सलाह से रोगी को ‘डाट प्रणाली’ के अधीन स्वीकृत दवाओं का सेवन करना चाहिए।

क्षयरोग की भारत में स्थिति

भारत में W.H.O. 2017 के अनुसार टी.बी. के प्रति वर्ष लगभग 13.4 लाख मामले सामने आते हैं जो कि पूरे विश्व के 7.5 मिलियन का तीसरा भाग है। सभी नए टीबी मामलों का तीन प्रतिशत मल्टी ड्रग रजिस्टेंस होता है। अब तक यहाँ 6.7 मिलियन रोगी डोट्स ट्रीटमेंट ले चुके हैं जिससे 1.2 मिलियन लोगों को बचाया गया।

कुष्ठ रोग क्या है ?

कुछ एक संचारणीय रोग हैं। यह रोग माइकोबैक्टिरियम लेप्री नामक जीवाणु से फैलता है। कुष्ठ रोग वायु या जल के द्वारा नहीं फैलता है। यह पैतृक या आनुवांशिक रोग भी नहीं है। कुष्ठ रोग तभी संचारित होता है जब एक व्यक्ति किसी रोगी व्यक्ति के संपर्क में काफी घनिष्ठता से रहता है।

कुष्ठ रोग के लक्षण

इस रोग के लक्षण शरीर पर चकते प्रकट होने लगते हैं तथा कोहनी व घुटने के पीछे, एड़ी और कलाई के अगल-बगल की तंत्रिकाएं प्रभावित हो जाती है। बाद में ऊतकों का अपक्षय होने लगता है। शरीर के जिन स्थानों पर यह रोग होता है वहां संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है तथा स्पर्श का अनुभव नहीं होता है।

कुष्ठ रोग का उपचार

इस रोग के उपचार हेतु एन्टीसेप्टीक स्नान करना चाहिए। 1981 से शुरू बहुआयामी चिकित्सा पद्धति या MDT = Multi Drug Treatment जिसमें तीन दवायें शामिल है। जैसे:

  • डेपसोन
  • क्लोफाजीमीन और
  • रिफैमिसीन का सेवन किया जाता है।

इसके अलावा कुष्ठ रोग की रोकथाम के लिए रोगियों को संक्रमण से बचने के लिए एकांत में रखना चाहिए। प्रारम्भिक लक्षण प्रतीत होने पर डाॅक्टर से मिलना चाहिए। भारत में कुष्ठ रोग को लोग एक अभिशाप समझते हैं। इसलिए रोग को काफी सम तक छिपाए रखते हैं लेकिन आजकल इसका सफल इलाज किया जा रहा है।

टिटनेस क्या है ?

इस रोग को धनुस्तम्भ या धनुष-टंकार भी कहते है। यह अत्यन्त कष्टदायक रोग है जिसमें मृत्यु की काफी सम्भावना रहती है। यह क्लोस्ट्रीडियम टिटेनी नामक जीवाणुओं से होता है। शरीर के किसी भाग में चोट लने पर जब घाव बन जाता है, तब ये जीवाणु धूल, गोबर, आदि से घाव के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

इस रोग में गर्दन, चेहरे तथा जबड़े की मांसपेशियों में पक्षाघात हो जाता है व शरीर अकड़ जाता है। श्वसन पेशियां भी संकुचित हो जाती है, जिसके फलस्वरूप सांस बन्द हो जाती है।

टिटनेस का उपचार

रोग के रोकथाम व उपचार हेतु :

  • जब भी चोट लगे तो ATS का टीका जरूर लगवा लेना चाहिए।
  • बच्चों में DPT का टीका लगवा लेने से इस रोग से रक्षा होती है।
  • घाव को स्वच्छ रखना चाहिए तथा धूल से बचाना चाहिए।

टायफाॅइड क्या है ?

इसे आँत की बुखार के नाम से भी जाना जाता है। यह सालमोनेला टाइफोसा नामक जीवाणु से होता है। इसमें रोग की उदभवन अवधि 5 दिन से लेकर 20 दिन तक होती है। यह रोग पानी की गंदगी से फैसला है। इस रोग को मोतीझरा या मियादी बुखार भी कहते है।

इसमें रोगी को तेज बुखार रहता है और सिरदर्द बना रहता है। शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं। बाद में आँतों में अल्सर हो जाता है।

टायफाॅइड का उपचार

उपचार हेतु क्लोरोमाइसीटीन वर्ग की एन्टीबायोटिक लेना चाहिए। रोगी व्यक्ति को मल-मूत्र निवास स्थान से दूर कराया जाना चाहिए। भोजन को मक्खियों से बचाना चाहिए। इस रोग से बचाव के लिए शिशुओं को T.A.B. का टीका लगवाना चाहिए।

प्लेग रोग क्या है ?

यह एक छुआ-छूत की बीमारी है जो बैक्टिरिया (पाश्चुरेला पेस्टिस) द्वारा फैलती है। इसका संक्रमण चूहों एवं गिलहरी आदि पर पाये जाने वाले पिस्सुओं से होता है क्योंकि पिस्सुओं के शरीर में प्लेग का बैक्टिरिया रहता है। जेनोप्सिला केओपिस प्लेग का सबसे भयानक पिस्सु है क्योंकि यह आसानी से चूहें से मानव तक पहुँच जाता है। इस बीमारी में रोगी को बहुत तेज बुखार आता है और शरीर पर गिल्टियाँ निकल जाती है।

प्लेग रोग का उपचार

इस रोग में सल्फाड्रग्स एवं स्ट्रप्टोमाइसीन लेना चाहिए। चूहों को निवास स्थान से दूर करना इस रोग में बहुत ही आवश्यक होता है। अतः चूहों को मारने के लिए जिंक फोस्फेट का प्रयोग करना चाहिए।

काली खांसी क्या है ?

यह रोग प्रायः छोटे बच्चों को, बोर्डटिका पटर््यूसिस नामक जीवाणु से होता है। इसका संक्रमण हवा द्वारा होता है। इसमें बच्चों को बहुत देर तक कष्टदायक खांसी आती है, यहाँ तक कि खासते-खांसते बच्चे मल-मूत्र तक त्याग देते हैं। खांसी तब बन्द होती है जब खांसते-खांसते थोड़ा-सा स्त्राव निकल आता है। इस रोग के कारण कई शिशुओं की मृत्यु भी हो जाती है।

काली खांसी का उपचार

DPT का टीका लगवाकर शिशुओं में इस रोग के लिए प्रतिरोधकता उत्पन्न करा देनी चाहिए।

एंथ्रैक्स रोग क्या है ?

⇒एंथ्रैक्स सामान्यतः शाकाहारी पशुओं में होने वाली एक संक्रामक बीमारी है जो एक जीवाणु बैसीलस एन्थरैसस से होती है। मनुष्य में एंथ्रैक्स दुर्घटनावश संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने से हो जाता है। मनुष्यों में यह तीन तरह से फैलता है। यथा – त्वचा द्वारा, आंत द्वारा एवं श्वास द्वारा।

एंथ्रैक्स रोग के लक्षण

⇒एंथ्रैक्स के लक्षण 7 से 10 दिनों में प्रकट होने लगते हैं। इसमें कई बार बुखार, थकान, सूखी खांसी और बेचैनी होती है। सुधार की उम्मीद प्रायः तभी की जा सकती है जब कुछ घंटों या दो से तीन दिनों में इलाज शुरू कर दिया जाये, नहीं तो त्वचा का रंग बदलना, फटना, सांस लेने में दिक्कत, पसीना आना शुरू हो जाता है। ऐसे लक्षण प्रकट होने के 24 से 26 घंटे में रोगी मर जाते हैं।

एंथ्रैक्स रोग की पहचान

⇒एंथ्रैक्स की पहचान एंटीबाॅडी परीक्षण, एलीसा परीक्षण, रक्त परीक्षण, बैक्टीरियल कल्चर, सूक्ष्मदर्शी परीक्षण एवं डीएनए परीक्षण द्वारा किया जाता है।

एंथ्रैक्स रोग का उपचार

⇒एंथ्रैक्स संक्रमण से पूर्व इसका टीकाकरण करवाया जा सकता है। संक्रमण के पश्चात विशेष एंटीबायोटिक दवाओं के द्वारा इसका इलाज किया जा सकता है। पेनिसिलीन इस घातक एंथ्रैक्स रोग में काम में ली जाने वाली मुख्य दवा है।

भारत में एंथ्रैक्स रोग

अब भारत भी एंथ्रैक्स का टीका बनाने में सक्षम हो गया है। इस टीके का विकास जेएनयू स्थित जैव प्रौद्योगिकी विभाग के डाॅ. योगेन्द्र सिंह ने किया है। भारत द्वारा तैयार किया जाने वाला टीका अमेरिका एवं ब्रिटिश टीके से बेहतर साबित होगा और अपेक्षाकृत कम दुष्प्रभाव वाला भी होगा। इस समय मौजूद टीकों के इस्तेमाल के दौरान प्रतिरक्षण खुराक की भी आवश्यकता होती है किन्तु भारत द्वारा विकसित टीके में इसकी जरूरत नहीं होती।

जैविक हथियार के रूप में एंथ्रैक्स

जैविक हथियार के रूप में एंथ्रैक्स के बीजाणु पाउडर के रूप में प्रयुक्त किये जो सकते हैं। माइक्रोबायोलोजिस्ट एटलस के अनुसार यह पाउण्डर लिफाफे में रखा जा सकता है। यह उचित मौसम व हवा से फैल सकता है। एक विमान से 110 पौंड एंथ्रैक्स बीजाणु 12 मील में फैलाये जा सकते हैं।

वाइरस जनित रोग (Viral Disease in Hindi)

छोटी माता क्या है ?

यह रोग वैरिसेला विषाणु के उपजाति द्वारा फैलता है। इसका प्रकोप सम्पूर्ण शरीर पर होता है। यह रोग रोगी के श्वास या छीकें द्वारार प्रसारित होता है। इस रोग से प्रभावित रोगी के शरीर पर छोटे-छोटे दाने किनल जाते हैं, हल्का बुखार हो जाता है तथा जोड़ों में दर्द रहता है।

छोटी माता का उपचार

इसका सीधा उपचार नहीं है, रोगी को स्वच्छ वातावरण में रखना चाहिए।

चेचक क्या है ?

यह रोग वैरिओला विषाणु द्वारा फैलता है। इसका प्रकोप सम्पूर्ण शरीर पर होता है। रोग वायु द्वारा या रोगी से सीधे सम्पर्क द्वारा फैलता है, इसमंे रोगी को ज्वर, सिर में दर्द, जुकाम तथा उल्टियाँ होती है, फिर 3-4 दिनों बाद मुँह पर लाल दाने निकल आते हैं, जो कि शीघ्र ही पुरे शरीर पर फैल जाते हैं। ये दाने अन्त में जल स्फोटों में बदल जाते हैं, जिनमें साफ तरल भरा रहता है। सूखने पर ये दाने शरीर पर निशान छोड़ जाते हैं।

चेचक का उपचार

इसके उपचार हेतु रोगी के सम्पर्क में आने से बचना चाहिए। चेचक का टीका लगवा देना चाहिए।

पोलिया रोग क्या है ?

यह रोग पोलियो मेलाइटिस वाइरस द्वारा फैलता है। इस रोग के विषाणु भोजन एवं जल के साथ बच्चों की आंत में पहुंच जाते हैं। आंत की दीवारों से होते हुए ये रुधिर प्रवाह के साथ मेरुरज्जु में पहुँच जाते हैं, जहाँ पर ये विभिन्न अंगों की मांसपेशियों को नियन्त्रित करने वाली तन्त्रिकाओं को क्षति पहुंचाते हैं। परिणामस्वरूप, मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं तथा टांगें, हाथ व कटि प्रदेश निष्क्रिय हो जाते हैं। बच्चे विकलांग हो जाते हैं। कभी-कभी विषाणु मस्तिष्क के श्वास केन्द्र भी नष्ट कर देते हैं जिससे रोगी सांस नहीं ले पाता।

पोलियों रोग का उपचार

  • बच्चों को गन्दे स्थानों पर नहीं खेलना चाहिए।
  • बच्चों को पोलियो ड्रोप्स पिलानी चाहिए।

हैण्डफुट माउथ रोग क्या है ?

यह वारयस से फैलने वाला रोग है, जो गले में आरंभ होकर व्यक्ति से व्यक्ति को संक्रमित करता है। यह रोग ज्यादातर 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को होता है।
यह रोग संक्रमित व्यक्ति के प्रत्यक्ष संपर्क लार, मल, गले या नाक के अपवप्र्य पदार्थों के संपर्क से होता है। इसके लक्षणों में बुखार, सरदर्द, भूख का कम होना, गले में अल्सर, डिहाइड्रेशन, पैरालिसिस आदि शामिल है।

हैण्डफुट माउथ रोग के कारक ईवी 71 वायरस द्वारा चार एशियाई देशों में 20000 से अधिक बच्चे चपेट में आ गए। वर्ष 1998 में ताइवान में इसका काफी बुरा प्रभाव देखने में आया जबकि चीन में ईवी 71 के द्वारा 28 बच्चों की मृत्यु हुई और 15 हजार संक्रमित हुए। सिंगापुर व वियतनाम में 13000 से अधिक मामले सामने आए।

रेबीज क्या है ?

⇒रेबीज, जिसे हाइड्रोफोबिया के नाम से जाना जाता है, एक घातक विषाणु-जन्य रोग है जो कि केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र को मुख्यतः प्रभावित करता है। यह रोग शत-प्रतिशत घातक होता है। मनुष्य में यह रोग ऐसे किसी जानवर के काटने से होता है, जिसमें रेबीज के विषाणु विद्यमान होते हैं, जैसे-पागल कुत्ता, बिल्ली, गीदड आदि।

रेबीज रोग के लक्षण

सिर दर्द, गले में दर्द तथा हल्का बुखार (2-10 दिन तक) इस रोग के प्रारंभिक लक्षण हैं। रोगी को घाव के स्थान पर चिलमिलाहट होती है। धीरे-धीरे शोर, तेज रोशनी व ठण्डी हवा के प्रति रोगी असहनशील हो जाता है। बाद में तरल पदार्थ को निगलने में भी दिक्कत महसूस करता है। रोग की चरम सीमा में तो पानी देखते ही या पानी की आवाज से ही रोग डर जाता है और अन्ततः रोगी की मृत्यु हो जाती है।

रेबीज रोग का उपचार

एण्टीरेबीज टीका लगाकर रोगी की रेवीज से रक्षा की जा सकती है। रेबीपुर तथा HDCV इस रोग के लिए बनाए गए नए टीके हैं। ज्ञातव्य है कि इसके टीके की खोज लुई पाश्चर ने किया था।

हेपेटाइटिस क्या है ?

यह यकृत का रोग है। जो हिपैटाइटिस नामक वाइरस के संक्रमण से होता है। भारत में इस समय हेपेटाइटिस के बी एवं सी किस्म के विषाणुओं से करीब 5 करोड़ 80 लाख लोग संक्रमित हैं। विश्व भर में एड्स को सबसे खतरनाक बीमारी बताया जाता है, लेकिन हेपेटाइटिस से मने वाले की संख्या एड्स से 10 गुना अधिक है। दुखद स्थिति यह है कि बाजार में इसके टीके उपलब्ध होने के बावजूद भारत में हर साल दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हेपेटाइटिस के कारण हो रही है। हेपेटाइटिस के विषाणु छह प्रकार के होते हैं-ए, बी, सी, डी, ई और जी। मनुष्य इन सभी किस्मों के विषाणुओं के वाहक होते हैं। ये विषाणु संक्रमित मनुष्य से स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। ए और ई किस्म के विषाणु पानी में पैदा होने वाले हैं। ये विषाणु थूक, खंखार आदि के जरिये फैलते हैं, जबकि अन्य किस्म के विषाणु रक्त के जरिये संक्रमित होते हैं। इनमें बी और सी किस्म के विषाणु अधिक खतरनाक होते हैं।

हेपेटाइटिस रोग के लक्षण

इस रोग में यकृत में उत्पन्न होने वाले पित्त वर्णक को यकृत पूरी तरह अपचय नहीं कर पाता इसीलिए आँखें और त्वचा पीली हो जाती है, पेशाब भी पीला हो जाता है। तिल्ली की कार्य क्षमता घट जाती है, खून में पित्त बढ़ जाता है। भूख नहीं लगती है।

हेपेटाइटिस रोग का उपचार

उपचार हेतु रोगी को आराम के साथ यकृत के गामा ग्लोबुलीन इन्जेक्शन तथा दही, गन्ने का रस, हरा साग सब्जी, (बिना तेल के) का सेवन करना चाहिए। ज्ञातव्य है कि एक्लिप्टा एल्वा नामक पौधे से प्राप्त औषधि इसके उपचार में सहायक होती है।

खसरा क्या है ?

यह रोग पौलिनोसा मार्बिलोरम नामक विषाणु के संक्रमण से होता हैं यह बीमारी सामान्यतया बच्चों में पायी जाती है। इस रोग में शरीर में छोटे-छोटे लाल रंग के दाने निकल आते है, गले और नाक में सूजन हो जाती है तथा कभी-कभी बच्चे की मृत्यु भी हो जाती हैं।

खसरा रोग का उपचार

रोग से बचाव के लिए बच्चों को खसरे का टीका लगाया जाता है।

गलसुआ क्या है ?

यह लार ग्रंथि को प्रभावित करने वाला मम्पस विषाणु जनित रोग है, जिसका प्रसार रोगी के लार से होता है। रोगी को प्रारम्भ में झुरझुरी, सिरदर्द तथा कमजोरी महसूस होती है। एक दो दिन बुखार रहने के बाद कर्ण के नीचे स्थित पैरोटिक ग्रंथि में सूजन आ जाती है।

गलसुआ रोग का उपचार

इसके उपचार हेतु रोगी को नमक के पानी से सिकाई करनी चाहिए। टेरामाइसिन का इंजेक्शन लेने से इसमें आशातीत लाभ होता है।

बर्ड फ्लू क्या है ?

बर्ड फ्लू हाल के वर्षों में पूरे विश्व में एक गम्भीर समस्या के रूप में उभर कर आया है। पहले से ही विद्यमान एड्स जो वर्तमान रूप में अत्यन्त भयंकर बीमारियों में से एक है, से इसके प्रथम 25 वर्षों में 250 लाख लोगों की जान गई। जबकि बर्ड फ्लू से वर्ष 1918-19 के दौरान इसके प्रथम प्रकोप से मात्र 25 सप्ताह की अवधि में इतने ही लोग मौत के मुँह में समा गये।

फ्ले के प्रकोप की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 से अनेक एशियाई व यूरोपीय देशों, जिनमें कम्बोडिया, चीन, इण्डोनेशिया, जापान, कजाकिस्तान, मलेशिया, मंगोलिया, दक्षिण कोरिया, रोमानिया, रूस, थाईलैंड, तुर्की तथा वियतनाम शामिल था, में कुक्कुट पालन से बर्ड फ्लू फैला था जिससे पूरे विश्व को चेतावनी मिली थी। इस बीमारी से लाखों पक्षी या तो मर गये थे या फिर बुरी तरह से प्रभावित हुए थे। इतना ही नहीं इण्डोनेशिया, वियतनाम, थाइलैंड तथा कम्बोडिया में इस बीमारी से प्रभावित 125 लोगों में से 64 अपनी जान गंवा बैठे थे।

विषाणु के संक्रमण से होने वाली मृत्यु की यह दर गंभीर चेतावनी स्वरूप है। इस स्थिति को देखते हुए विश्व स्वास्थय संगठन ने निकट भविष्य में सर्वव्यापी महामारी के गंभीर जोखिम की चेतावनी दी है।

बर्ड फ्लू (जिसे एवियन इंफ्लूएंजा, टाइप ए फ्लू, जीनस ए फ्लू या एवियन फ्लू भी कहते हैं) आर्थोमिक्सोविरिडल कुल के इंफ्लुएंजा वायरस ए जीनस के विषाणुओं द्वारा होता है। ये वायरस सेन्ट्रल वायरस कोर से हीमोग्लूटिनिन (H) तथा न्यूरोमिनिडेस (N) प्रोटीन पर आधारित विभिन्न उप-प्रकारों में वगीकृत है। कुल मिलाकर 16H तथा 9N उप-प्रकार है। इस प्रकार H तथा N के 144 भिन्न-भिन्न संयोजन हो सकते हैं – उदहारण के लिए H1N1, H2N2, H5N1 आदि।

बर्ड फ्लू वायरस पक्षियों पर रहता है, तथा इनसे यह विभिन्न अन्य जन्तु प्रजातियों जैसे सुअरों, घोड़ों, सील मछली, ह्वेल मछली तथा मनुष्यों में फैलता है। चूंकि पक्षी इसके प्राकृतिक वाहक हैं तथा वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित होते रहते हैं, इसलिए इस रोग की सीमाएं नहीं होतीं। यह वायरस वायु, खाद (संक्रमित पक्षियों द्वारा उत्सर्जित मल-मूत्र), संक्रमित भोजन-सामग्री, जल आदि द्वारा संचारित होता है। जब दो प्रजातियाँ (उदाहरण के लिए कुक्कुट तथा सुअर) विभिन्न किस्मों द्वारा संक्रमित होती है, एक दूसरे को संक्रमित करती हैं, तब फ्लू स्ट्रेन उत्परिवर्तित हो जाते हैं- उदाहरण के लिए शिफ्ट द्वारा उत्परिवर्तन। नई विकसित स्ट्रेन अत्यधिक अनिष्टकारी हो सकती है। उत्परिवर्तन ड्रिफ्ट यानी जीनोम में अनियमित परिवर्तनों द्वारा भी हो सकते हैं। बर्ड फ्लू का सर्वाधिक प्रकोप 1918-1919 में हुआ था।

स्पेनिश फ्लू

स्पेनिश फ्लू तथा ला ग्रिप के नाम से ज्ञात, यह सर्वव्यापी महामारी H1N1 स्ट्रेन द्वारा हुई थी तथा इससे लाखों लोगों की जानें गई थीं। इससे प्रभावित देशों में भारत (170 लाख), यू एस ए (600,000), यू.के. (200,000), फ्रांस (400,000) तथा जापान (260,000) सम्मिलित थे। पिछली सदी में बर्ड फ्लू के कारण दो बार और सर्वव्यापी महामारियों का प्रकोप हुआ।

एशियन फ्लू

इंफ्लूएंजा फ्लू वायरस के H2N2 स्ट्रेन के कारण चीन से एशियन फ्लू (1957-58) का उद्भव हुआ। 1957 में विकसित वैक्सीन से रोग के नियंत्रण में सहायता मिली, परन्तु फिर भी लगभग 20 लाख लोगों की जान चली गई। बाद में एशियन फ्लू वायरस एन्टीजेनिक शिफ्ट द्वारा H3N2 स्ट्रेन के रूप में विकसित हुआ तथा हांगकांग में फ्लू की सर्वव्यापी महामारी फैली और इससे 1968-69 में लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु हो गई।

एशियन फ्लू के समय चिकित्सा विज्ञान में इन्फ्लूएंजा वायरस को समझने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। उस समय बेसीलस इंफ्लूएंजा वायरस को समझने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। उस समय बेसीलस इंफ्लूएंजा की वैक्सीन विकसित करने के लिए काफी प्रयास किये गये लेकिन इस सर्वव्यापी महामारी को नियंत्रित करने में सफलता नहीं मिली। लेकिन माइक्रोबाॅयोलाॅजी व बायोटेक्रोलाॅजी के वर्तमान युग में हम आण्विक स्तर पर रोगों का अध्ययन कर सकते हैं तथा इनके उपचार/बचाव के लिए प्रभावी वैक्सीन तथा औषधियों का विकास कर सकते हैं।

2005 को अनुसंधानकर्ताओं ने पुरालेख टिश्यू नमूनों के द्वारा स्पेनिश फ्लू स्ट्रेन के आनुवंशिक क्रम के पुननिर्माण के बारे में बताया था, उन्होंने स्पेनिश फ्लू सर्वव्यापी महामारी से अब तक हुई विज्ञान की प्रगति के बारे में भी बताया। इसे H1N1 स्ट्रेन के रूप में पहचाना गया, यह सामान्य मानव इंफ्लूएंजा स्ट्रेन से बिल्कुल भिन्न होती है। क्योंकि यह फेफड़ों की कोशिकाओं को संक्रमित कर देती है। जो वायरस के लिए सामान्यतया प्रभावशाली होती है। 2005 का प्रकोप H5N1 के कारण हुआ था।

H5N1 में H1N1 की अनेक विशेषताएं होती हैं। लेकिन यह अभी तक मानव से मानव में फैलता हुआ नहीं पाया गया है। यदि ऐसा स्ट्रेन के उत्परिवर्तन द्वारा (सामान्य मानव इंफ्रूएंजा स्ट्रेन का H5N1 के साथ परस्पर संकरण) हो गया, तब स्थिति बहुत खतरनाक हो जायेगी।

बर्ड फ्लू की औषधि : टामिफ्लू

हालाँकि टामिफ्लू बर्ड फ्लू के मरीज को पूरी तरह चंगा नहीं कर सकती, किन्तु संक्रमण के शुरुआती समय में लिये जाने पर बीमारी पर प्रभावी अंकुश आवश्य लगा देती है, जिससे रोग की भयावहता काफी कम हो जाती है। टामिफ्लू में सक्रिय घटक ओसेल्टामिविर है जो चीन की एक औषधि स्टार एनिसे से प्राप्त सिकमिक अम्ल से पृथक की जाती है। यह औषधि बर्ड फ्लू विषाणु द्वारा स्त्रावित कोशिका नाशी न्यूरामिनीडेज रसायन को निस्तेज करती है। इस औषधि का विपणन फिलहाल स्विस, फार्मा कम्पनी रोश कर रही है। इसके पास इसके निर्माण का प्रोडक्ट पेटेन्ट है।

चूँकि भारत में रोश ने टामिफ्लू के प्रोडक्ट पेटेन्ट के अधिकार हेतु अभी तक दावा नहीं किया है। अतः भारत में ही इसके जेनेरिक वर्जन के व्यापारिक निर्माण की अनुमति सिप्ला और रेनबैक्सी दवा कम्पनियों को भारत सरकार ने बर्ड फ्लू के आसन्न खतरे को देखते हुए दे दी है किन्तु सबसे बड़ी मुश्किल है इस औषधि के कच्चे माल सिकमिक अम्ल का भारत में उपलब्ध न होना। यह आज फिलहाल केवल चीन और जर्मनी में ही उपलब्ध है। भारत में इस वनौषधि की खोज, जो वस्तुतः एक तरह की मसाला वनस्पति है, शुरू हो गयी है।

प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoan Disease in Hindi)

मलेरिया क्या है ?

यह रोग प्लाज्मोडियम नामक परजीवी प्रोटोजोआ की जातियों से होता है।

सन् 1880 में फ्रांसीसी डाॅक्टर ए. लेबेरान ने मलेरिया परजीवी की खोज की तथा सर रोनाल्ड राॅस ने इस रोग के परजीवी का संबंध मादा एनोफिलीज मच्छर से बताया। मादा ऐनीफिलीज मच्छर इस परजीवी को स्वस्थ मनुष्य के रक्त में तब पहुंचा देता है जब यह रक्त चूसने के लिए मनुष्य को काटता है। प्लाज्मोडियम की चार जातिया निम्न है:

  • ⇒प्लाज्मोडियम फाल्सिपेरम (P. falciparum)
  • प्लाज्मोडियम वाइवैक्स (P. vivax)
  • ⇒प्लाज्मोडियम आॅक्जैली (P. oxale)
  • प्लाज्मोडियम मलेरी (P. malariae)

ये चारों मलेरिया रोग के कारण हैं।

मच्छर द्वारा काटे जाने पर, मच्छर की लार के साथ हंसियाकार स्पोरोजोइट के रूप में प्लाज्मोडियम शरीर में प्रवेश करता है। रक्त प्रवाह के साथ यह यकृत में पहुँचता है जहां पर यह गुणन करता है। एक-दो हफ्ते के अन्दर एक स्पोरोजोइट से 5000-10000 गोलाकार मीरोजोइट बन जाती हैं। ये मीरोजोइट हजारों की संख्या में यकृत में उपयुक्त समय पर छिप जाते हैं और लाल रुधिर कणिकाओं पर आक्रमण करते हैं। एक हफ्ते में ही रोगी को बार-बार बुखार तथा ठण्ड चढ़ता है। ऐसा इसलिए होता है कि बार-बार RBC फटती है और मीरोजोइट रक्त में विषाक्त पदार्थ निकालते हैं।

मलेरिया रोग का उपचार

मलेरिया रोग से बचने के लिए मच्छरों द्वारा काटे जाने से बचना चाहिए। मसहरी लगाकर सोना चाहिए। मच्छरों की संख्या बढ़ने से रोकने के लिए गड्ड़ों में पानी नहीं एकत्र होने देना चाहिए। घर के आस-पास सफाई रखनी चाहिए। मलेरिया के लक्षण देखते ही रोगी के खून की जांच करवाकर उपयुक्त दवा जैसे, कुनैन कैमाक्विन, क्लोरोक्विन आदि चिकित्सक के परामर्शानुसार लेनी चाहिए।

जापानी इंसेफेलाइटिस क्या है ?

उत्तर प्रदेश में पैठ कर चुका जापानी इंसेफेलाइटिस का नाम सुनते ही बच्चे सहम से जाते है। उ.प्र. के गोरखपुर जिले से शुरू हुयी यह बीमारी आज चिन्ता का विषय बनी है।

वायरस जनित यह बीमारी मनुष्यों में मच्छरों के काटने से होती है। विशेष प्रकार के वायरस, ‘आर्बोवायरस’, क्यूलेक्स मच्छरों में पाये जाते हैं। ये क्यूलेक्स मच्छर भी विशेष प्रकार के होते हैं क्योंकि इनमें धान के खेत में प्रजन्न करने की अदभुत क्षमता होती है। जब ये मच्छर मनुष्यों को काटते हैं तो आर्बोवायरस मनुष्य के रक्त में पहुँचकर उसे संक्रमित कर देते हैं।

रक्त में पहुँचने पर इनका प्रथम आक्रमण उन ग्रन्थियों पर होता है जो मनुष्य के सफल पाचन एवं सुरक्षा तंत्र के लिए जिम्मेदार होती है और इन्हीं ग्रन्थियों में बहुगुणन करके ये वायरस अपनी संख्या में वृद्धि कर लेते हैं। तत्पश्चात पुनः रक्त से होते हुये ये जानलेवा वायरस दिमाग में पहुँच जाते हैं और यही उनका अन्तिम लक्ष्य भी होता है। जैसे ही वायरस दिमाग में पहुँचते हैं, अत्यन्त तीव्र गति से ऊतकों को नष्ट करना शुरू कर देते हैं। जिससे केवल दिमाग ही नहीं वरन स्पाइनल काॅर्ड तक प्रभावित होकर फूल जाती है और बाह्य श्वसन तंत्र मूलतः नाक के आन्तरिक भाग की एपीथीलियम सूखकर इतना कठोर हो जाती है कि सांस लेने पर अत्यन्त तीव्र दर्द होता है। संक्रमण इतना तीव्र होता है कि एक से तीन दिन में ही रोग के भयावह लक्षण सामने आने लगते है।

मनुष्य इस वायरस का आकस्मिक पोषद है। ये वायरस इनजोयटिक चक्र के अन्तर्गत मच्छर एवं कुछ कशेरुकी जैसे पालतू सूअर आदि और पक्षियों के बीच पहुँचते रहते हैं। इस वायरस के जीवन चक्र में मनुष्य की कोई भी भागीदारी नहीं हैं परन्तु जब संक्रमित मच्छर मुख्यतः क्यूलैक्स ट्राइटैनियोरायनकस मनुष्यों को काटते हैं, जो यह आकस्मिक रूप से इन तक पहुँचते हैं और रोग उत्पन्न करते हैं।

जापानी इंसेफेलाइटिस रोग का उपचार

जापानी इंसेफेलाइटिस का बचाव की उपचार है, क्योंकि इस रोग के प्रमुख स्रोत मच्छर हैं। अतः मच्छरों से बचना ही रोग से बचना है। इसके बचाव का सबसे कारगार उपाय टीकाकरण (जे.ई. वैक्सीन) है। जिसमें SA-14-14-2 की एकल खुराक दी जाती है।

पेचिश क्या है ?

यह एन्ट अमीबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोेटोजोआ के कारण होता है। यह परजीवी बड़ी आँत के अगले भाग में रहता है। इसमें श्लेष्म और खून के साथ दस्त, उदरीय वेदना और सपीड़ कुथन होता हैं। खाना नहीं पचता और भूख नहीं लगती है।

पेचिश रोग का उपचार

उपचार हेतु पानी उबालकर पीना चाहिए। एन्ट्रीकोनाल, आइरोफार्म, मेक्साफार्म जैसी दवाओं का प्रयोग कराना चाहिए। रोगी को पूरी सफाई से रहना चाहिए।

काला-जार क्या है ?

यह रोग लीशमैनिया नामक प्रोटोजोआ से फैलता है। इस परजीवी का वाहक बालूमक्खी है। इसमें रोगी को तेज बुखार आता है। इसके बचाव हेतु मच्छरदानी का प्रयोग एवं चिकित्सक के परामर्शानुसार इलाज कराना चाहिए।

पायरिया क्या है ?

यह मसूढ़ों का रोग है जो एन्टअमीबा जिन्जिवेलिस नामक प्रोटोजोआ के कारण होता है। इसमें मसूढ़ों से पस निकलता है तथा दाँतों की जड़ों में घाव हो जाता है। कभी-कभी मसूढ़ों से रक्त निकलता है तथा मुँह से दुर्गन्ध आती है। दांत ढीले होकर गिनले लगते हैं।

पायरिया रोग का उपचार

इसके उपचार हेतु रोजमर्रा के भोजन में रेशेदार खाद्य पदार्थ जैसे हरी सब्जियाँ, गन्ना, फल इत्यादि जरूर खाना चाहिए। दाँतों की सफाई अच्छी तरह करनी चाहिए। जिससे टारटर का जमाव न हो। पेनीसिलीन का इंजेक्शन लेना चाहिए। खाने में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होना चाहिए।

सोने की बीमारी क्या है ?

यह रोग ट्रिपेनोसोमा नामक प्रोटोजोआ के कारण होता है। यह प्रोटोजोआ सी-सी मक्खी में रहता है। जब सी-सी मक्खी किसी रोगी को काटकर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटती है तो यह रोग फैलता है। इसमें रोगी को बहुत नींद आती है तथा बुखार होता है। परजीवी मस्तिष्क में पहुँचकर सेरिब्रोस्पाइनल द्रव में पहुँच जाते हैं।

सोने की बीमारी का उपचार

इसके उपचार हेतु रोगी से दूर रहना चाहिए तथा सी-सी मक्खी का उन्मूलन करना चाहिए।

कृमि जनित रोग (Worm Disease in Hindi)

फाइलेरिया क्या है ?

यह रोग वऊचेरिया वैक्रोफ्टाई नामक प्रोटोजोआ से होता है। जो क्यूलेक्स मच्छर से फैलता है। गन्दे पानी में रोगाणु का जनन तेजी से होता है। इस रोग का कारण कृमि मनुष्य की लिम्फ ग्रंथियों में पहुँच जाता है। इसके कारण शरीर के अंग सूचक बहुत मोटे हो जाते हैं, विशेषकर पाँव तथा वृषण ग्रंथियाँ। इसलिए इस रोग को हाथीपांव भी कहते हैं। रोग की शुरुआत के साथ ही तेज बुखार होता है।

फाइलेरिया रोग का उपचार

उपचार हेतु स्वच्छ पानी का प्रयोग करना चाहिए तथा क्यूलेक्स मच्छड़ों को मारने के लिए डाइएथिल कार्बेमेंजीन का प्रयोग करना चाहिए। चिकित्सक के परामर्शानुसार हेट्रोन एम.एस.ई. आदि दवाएँ खानी चाहिए।

टीनिएसिस क्या है ?

यह भी आंत का एक रोग है जो कि टीनिया सोलियम नामक परजीवी द्वारा होता है। इसमें रोगी व्यक्तियों की आंत में अण्डे उपस्थित होते हैं जो कि मल के साथ बाहर आ जाते है। सुअर जब इस मल को खाते हैं, तो ये सुअर की आंत में पहुँच जाते हैं। यहाँ पर अण्डे का कवच घुल जाता है तथा भ्रूण बाहर निकल आता है। यह आंत को भेदकर रक्त वाहिनियों से होते हुए मांसपेशियों में पहुँच जाता है। वहां पर यह कवच धारण करके विश्राम करता है। यह अवस्था में इसे ब्लैडरवर्म कहते है।

यदि ऐसे संक्रमित सूअर का अधपका मांस कोई व्यक्ति खाता है, तो ब्लैडरवर्म उसकी आंत में पहुँचकर टेपवर्म के रूप में विकसित हो जाता है तथा आंत की दीवारों पर चिपक जाता है।?
प्रायः टीनिएसिस के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं पड़ते। केवल कभी-कभी अपच और पेट-दर्द होता है। परन्तु जब कभी आंत में लार्वा उत्पन्न हो जाते हैं और ये केन्द्रिय तन्त्रिका तन्त्र, आँखों, फेफड़ों, यकृत व मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं। तो रोगी की मृत्यु हो जाती है।

टीनिएसिस रोग का उपचार

रोकथाम व उपचार हेतु केवल भली-भांति पका हुआ सूअर आ मांस ही खाना चाहिए। निकोलसन नामक दवा इसके उपचार में प्रयुक्त होती है।

ऐस्केरिएसिस क्या है ?

आंत का यह रोग ऐस्केरिस लुम्ब्रीकाॅइडिस नामक निमेटोड द्वारा होता है। यह रोग बच्चों में अधिक पाया जाता है। ऐस्कोरिस के अण्डे रोगी व्यक्तियों की आंत में उपस्थित होते हैं। फलतः पेट में तेज दर्द होता है। वृद्धि रूक जाती है। फेफड़ों में पहुँचकर ये ज्वर, खांसी तथा ईसोनोफिलिया का कारण बनते हैं। शरीर में रक्त की कमी हो जाती है।

ऐस्केरिएसिस रोग का उपचार

इसके लिए वैयक्तिक तथा सामाजिक सफाई सर्वश्रेष्ठ उपचार है। इसके अलावा मेबेन्डाजोल एवं पाइपराजीन फास्फेट का प्रयोग निमेटोड से छुटकारा दिला देता है।

संक्रामक रोगों से संबंधित परीकक्षोपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दाद रोग किसके कारण फैलता है ?
उत्तर: ट्राइकोफाइटान नामक कवक

प्रश्न 2. बी.सी.जी. के आविष्कारक कौन थे ?
उत्तर: यूरिन कालमेंट

प्रश्न 3. किस रोग में जीवाणु बच्चों के श्वासनली में एक झिल्ली बनाकर अवरोध उत्पन्न कर देते हैं ?
उत्तर: डिफ्थीरिया

प्रश्न 4. बहु औषधि उपचार किसके उपचार हेतु दी जाती है ?
उत्तर: कुष्ठ रोग निवारण हेतु

प्रश्न 5. सिफलिस, गोनोरिया तथा एड्स को किस प्रकार का रोग कहा जाता हैं ?
उत्तर: लैंगिक संचारित रोग

प्रश्न 6. चीनोपोडियम का तेल किस रोग में प्रयुक्त होता है ?
उत्तर: ऐस्केरियेसिस

प्रश्न 7. फीता कृमि का संक्रमण होता है-
उत्तर: सुअर का अधपका मांस खाने से

प्रश्न 8. डेंगू ज्वर किस मच्छर से फैलता है ?
उत्तर: एडीज इजिप्टी

प्रश्न 9. वाइरस के उपचार में प्रयोग किया जाता है –
उत्तर: इंटरफेराॅन

प्रश्न 10. गठिया रोग जोड़ों में किस अम्ल के जमाव से होता है ?
उत्तर: यूरिक अम्ल

प्रश्न 11. संक्रामक रोग के फैलने का माध्यम क्या होता हैं ?
उत्तर: हवा, जल, मिट्टी, खाद्य पदार्थ

प्रश्न 12. हाथीपांव का कारक क्या है ?
उत्तर: वऊचेरिया बैक्रोफ्टाई

प्रश्न 13. पोलियो का विषाणु कौन से ऊतक को नष्ट करता है ?
उत्तर: मेरुरज्जु के पृष्ठ श्रृंगों को

प्रश्न 14. उपार्जित बीमारियां कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर: दो (संक्रामण एवं असंक्रामण)

प्रश्न 15. हिपैटाइटिस के लिए कौन-सा इंजेक्शन लगाया जाता हैं ?
उत्तर: गामा ग्लोबुलीन

प्रश्न 16. जेनाइटल हर्पिज किस कारण से होता है ?
उत्तर: वाइरस

प्रश्न 17. विश्व में प्लेग रोग की शुरुआत कहाँ से मानी जाती है ?
उत्तर: चीन से

प्रश्न 18. डायरिया किस तंत्र को प्रभावित करने वाला प्रोटोजोआ जन्य रोग है ?
उत्तर: पाचन तंत्र

प्रश्न 19. स्लीपिंग सिकनेस किस मक्खी द्वारा फैलता है ?
उत्तर: सी-सी मक्खी

प्रश्न 20. फाइलेरिया में मनुष्य का कौन-सा ग्रंथि प्रभावित होता है ?
उत्तर: लसीका ग्रंथि

प्रश्न 21. पाइरिया किस प्रकार का रोग है ?
उत्तर: प्रोटोजोवल

प्रश्न 22. भारत में किस प्रकार के हिपैटाइटिस रोगियों की संख्या अधिकतम है ?
उत्तर: हिपैटाइटिस-बी

प्रश्न 23. कुष्ठ रोग चिकित्सा के लिए अनुमोदित में तीन कौ-सी दवायें शामिल है ?
उत्तर: डेपसोन, क्लोफाजीमीन एवं रिफैमिसीन

प्रश्न 24. मलेरिया परजीवी की खोज किसने किया था ?
उत्तर: ए. लेबेराॅन

प्रश्न 25. प्लाज्मोडियम परजीवी की खोज किसने किया था ?
उत्तर: मलेरिया

प्रश्न 26. एस्पिरिन तथा पेन्टाजोसिन नामक औषधियाँ किस पादप से प्राप्त की जाती है ?
उत्तर: विलो

प्रश्न 27. कुनैन नामक मलेरिया की दवा किस पौधे से प्राप्त की जाती है ?
उत्तर: सिनकोना

तो दोस्तों आज के आर्टिकल में हमने संक्रामक रोगों/व्याधियों (Infectious Diseases in Hindi) के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की। अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी। तो काॅमेन्ट बाॅक्स में जरूर बताए। और इसी प्रकार की बेहतरीन जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहें। साथ इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

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