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List of Satellites Launched by India in Hindi – कृत्रिम उपग्रह

Author: EduTzar | On:7th Jul, 2020| Comments: 0

Friends, today we are going to know in detail about the artificial satellite (List of Satellites Launched by India), so let’s move towards today’s article.

Table of Content

  • कृत्रिम उपग्रह
    • कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार  (Artificial Satellites Launched by India)
      • भू-स्थिर उपग्रह
      • ध्रुवीय उपग्रह
    • कृत्रिम उपग्रह के उपयोग
    • भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम व प्रमुख उपग्रह (Indian Satellite in Hindi Language)
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
    • डाॅ. विक्रम अंबालाल साराभाई
    • डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

कृत्रिम उपग्रह

List of Satellites Launched by India

  • सूर्य के चारों ओर आठ ग्रह परिक्रमा करते है। इन ग्रहों के चारों ओर अनेक खगोलिय पिण्ड परिक्रमा कर रहे है। जिन्हें उपग्रह कहते है। ये सभी प्राकृतिक उपग्रह कहलाते है। जैसे पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा।
  • पृथ्वी के लिए वह न्यूनतम वेग जिससे वस्तु को ऊपर की ओर भेजने पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को पार जाए पलायन वेग कहलाता है। पृथ्वी के लिए वस्तु का पलायन वेग 11.2 किमी. प्रति सेकण्ड होता है।
  • मानव निर्मित पिण्ड जो पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों के चारों ओर चक्कर काट रहे हैं कृत्रिम उपग्रह कहलाते है। ये प्राकृतिक उपग्रह से अलग है। दूरदर्शन, मोबाइल, रेडियो आदि इन कृत्रिम उपग्रहों के कारण ही कार्य करते है।
  • कृत्रिम उपग्रहों को पलायन वेेग से कुछ कम वेग से प्रेक्षेपित किया जाता है जिससे वे गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर नहीं जाते व पृथ्वी के चारों ओर निश्चित कक्ष में चक्कर लगाते है। कृत्रिम उपग्रहों को राॅकेट या उपग्रह प्रेक्षेपणयान की सहायत से अंतरिक्ष म प्रेक्षेपित किया जाता है।
  • पृथ्वी से ऊपर फेंकी गई वस्तुएँ पुनः पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आती है। गुरुत्वाकर्षण की सीमा को पार करने पर वस्तुएँ पुनः पृथ्वी पर नहीं आती है।

कृत्रिम उपग्रहों के प्रकार  (Artificial Satellites Launched by India)

कृत्रिम उपग्रहों अंतरिक्ष में पृथ्वी के सापेक्ष दूरी तथा उपग्रह के उपयोग के आधार पर दो प्रकार के होते है –

  • भू-स्थिर
  • ध्रुवीय उपग्रह

भू-स्थिर उपग्रह

यदि पृथ्वी की सतह से किसी कृत्रिम उपग्रह की ऊँचाई इतनी हों, कि इसका परिक्रमण काल ठीक पृथ्वी की अक्षीय गति के परिक्रमण काल के बराबर हो तथा दिशा पश्चिम से पूर्व हो तो वह उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष एक ही स्थान पर स्थिर दिखाई देगा, यद्यपि पृथ्वी तथा उपग्रह दोनों गतिमान है। ऐसे ही उपग्रह को भूस्थिर उपग्रह कहा जाता है। तथा इनकी कक्षाा को पार्क-कक्षा कहा जाता है। पार्क-कक्षा की पृथ्वी सतह से ऊँचाई लगभग 36000 किलामीटर होती हैं और पार्क-कक्षा में उपग्रह का वेग लगभग 3.1 किमी/सेकण्ड होता है। भारतीय उपग्रह इनसैट-1B एक भूस्थिर उपग्रह है। ये उपग्रह भूमध्य रेखीय कक्ष में चक्कर काटते है। भूस्थिर उपग्रह का उपयोग सेटेलाईट टेलीफोन, सेटेलाईट टेलीविजन, सेटेलाइट रेडियों और अन्य प्रकार के वैश्विक संचार के लिए किया जाता है। इसलिए इसे संचार उपग्रह भी कहते है।

ध्रुवीय उपग्रह

वे कृत्रिम उपग्रह जिनकी कक्षा का तल पृथ्वी के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों के पास से गुजरे उन्हें ध्रुवीय उपग्रह कहते है। ये अपनी कक्षा में पृथ्वी की घूर्णन गति के विपरीत गति करते हैं तथा इनकी कक्षा को पश्चगतिक कक्षा कहतें है। इनका परिक्रमण काल इनकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है तथा मात्र कुछ घंटे होता है। इनका प्रक्षेपण ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान द्वारा किया जाता है। इनकी ऊँचाई 500 से 800 किमी होती है। ये बादलों के चित्र, वायुमण्डल संबंधी जानकारी, ओजोन परत में छेद जैसी कई महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती है। ध्रुवीय उपग्रह से प्राप्त सूचनाएँ सुदूर संवेदन, मौसम विज्ञान तथा पर्यावरण संबंधी अध्ययन के लिए उपयोगी है। यह उपग्रह अपने कैमरों के द्वारा पूरे दिन में एक या दो सम्पूर्ण पृथ्वी का अवलोकन कर सकता है।

  • किसी वस्तु के सीधे सम्पर्क में आए बिना उस वस्तु के संबंध में जानकारी प्राप्त करन सुदूर संवेदन कहलाता है।
  • भारत में कई सुदूर संवेदी उपग्रह IRS-1A, IRS-2B, IRS-3C आदि प्रेक्षेपित किए है।
  • सूक्ष्म तंरगे एवं रेडियो तरंगे निर्वात में अर्थात् बिना माध्यम के भी गमन कर सकती है।
  • कल्पना चावला प्रथम भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री थी। इनका जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में हुआ। इनकी मृत्यु स्पेस शटल कोलम्बिया के पृथ्वी पर लौटते समय 1 फरवरी 2003 को हुई।

कृत्रिम उपग्रह के उपयोग

  1. दूरसंचार के साधन जैसे टेलिफोन, मोबाइल, टेलीविजन, इंटरनेट आदि में यह पृथ्वी के किसी स्थान पर स्थित उपकरणों से तरंगे प्राप्त करता है और इन्हें पृथ्वी के अलग-अलग स्थानों पर भेजता है।
  2. इसकी सहायता से मौसम एवं भूगर्भ संबंधी सूचनाएँ एकत्र करके उनके बारे में विभिन्न उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है।
  3. फसल के उत्पादन एवं क्षेत्रफल का आकलन करना।
  4. सूखा एवं बाढ़ की चेतावनी देना और उनसे होने वाली हानि ज्ञात करना।
  5. भूमिगत पानी की खोज करके जल संसाधन का प्रबंधन करना।
  6. भूगर्भ में स्थित खनिज संसाधन का पता लगाना।
  7. वनों का सर्वेक्षण करके पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में सहायता करना।
  8. हवाई-अड्डों, बंदरगाहों तथा सैनिक ठिकानों की निगरानी रखना जिससे उनकी सुरक्षा के प्रबंध में आसानी हो।
  9. सैनिक गतिविधियों की जासूसी करना।
  10. अंतरिक्ष एवं वायुमण्डल में होने वाली घटनाओं की जानकारी प्राप्त करना।
  11. वायुयान, जहाज, व्यक्ति अथवा वस्तु के सही स्थान का पता लगाना।

सर्वप्रथम कृत्रिम उपग्रह रूस द्वारा 4 अक्टूबर 1957 भेजा गया।

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम व प्रमुख उपग्रह (Indian Satellite in Hindi Language)

1962
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन।

1963
नवम्बर को अमेरिका द्वारा दिया गया दो चरणों वाला पहला राॅकेट अंतरिक्ष में छोड़ा गया।

1965
तिरूवनंतपुरम के निकट ‘थुम्बा’ में राॅकेट प्रक्षेपण केन्द्र स्थापित।

1967
अहमदाबाद में ‘उपग्रह संसार पृथ्वी केन्द्र’ की स्थापना।

1968
2 फरवरी को ‘थुम्बा केन्द्र’ संयुक्त राष्ट्र को समर्पित किया गया।

1969
15 अगस्त को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन।

1972
अन्तरिक्ष विभाग और अन्तरिक्ष आयोग का गठन तथा पृथ्वी में मौजूद संसाधनों के सर्वेक्षण के लिए दूरसंवेदन परीक्षण समिति की स्थापना।

1975
प्रथम भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट को 19 अप्रैल को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया उसे बैकानूर में रूसी केन्द्र से कास्मोस राॅकेट से प्रक्षेपित किया गया था।

1977
उपग्रह दूरसंचार प्रयोग परियोजना शुरू हुई।

1979
रूसी अन्तरिक्ष केन्द्र से 7 जून को कास्मोस राॅकेट से प्रायोगिक पृथ्वी पर्यवेक्षक उपग्रह भास्कर-1 को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। श्री. हरिकोटा केन्द्र से 10 अगस्त को एस.एल.वी-3 का प्रथम प्रायोगिक प्रक्षेपण असफल रहा।

1980
श्री हरिकोटा केन्द्र से 18 जुलाई को एल.एल.वी-3 के दूसरे प्रायोगिक प्रक्षेपण से आर.एस.डी-1 रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।

1981
श्री हरिकोटा केन्द्र से एल.एल.वी-3 प्रक्षेपण वाहन के जरिए 31 मई को रोहिणी श्रेणी का दूसरा उपग्रह अन्तरिक्ष में भेजा गया।

1982
अमेरिका के डेल्टा राॅकेट से 10 अप्रैल को इनसैट-1 को कक्षा में स्थापित किया गया, 5 माह बाद यह निष्क्रिय हो गया।

1983
श्री हरिकोटा केन्द्र से एस.एल.वी-3 के दूसरे विकासात्मक प्रक्षेपण से आर.एस.डी-2 उपग्रह को 17 अप्रेल को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।

अमेरिका के अंतरिक्ष शटल से 30 अगस्त को इनसैट-2 बी को कक्षा में स्थापित किया गय जो 10 वर्षों तक सक्रिय रहा।

1984
3 अप्रैल का अंतरिक्ष क्षेत्र में पहले भारत-सोवियत संयुक्त अभियान के अन्तर्गत स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पदार्पण करने वाले पहले भारतीय बने।

1988
रूसी अंतरिक्ष केन्द्र ‘वोस्तोक’ से 17 मार्च को प्रथम कार्यात्मक भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह आई.आर.एस.ए. को कक्षा में स्थापित किया गया।

1990
अमेरिका के डेल्टा राॅकेट से 12 जून को इनसैट-डी को प्रक्षेपित किया गया।

1991
रूसी अन्तरिक्ष केन्द्र से वोस्तोक राॅकेट से 29 अगस्त को आई.आर.एस.-1 बी का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।

1992
श्री हरिकोटा केन्द्र से 20 मई को एस.एल.वी. की तीसरी विकासात्मक उड़ान से श्राॅस सी-1 उपग्रह को पृथ्वी की नीचली कक्षा में स्थापित किया गया और कौरू से एरियन राॅकेट से इनसैट-2 ए उपग्रह 10 जुलाई को प्रक्षेपित हुआ।

1993
कोरू से 23 जुलाई को ऐरियन राॅकेट से इनसैट-2 बी उपग्रह प्रक्षेपित किया गया। श्री हरिकोट से 20 सितम्बर को पी.एस.एल.वी. की प्रथम विकासात्मक उड़ान विफल रही।

1994
ए.एस.एल.वी. की चैथी विकासात्मक उड़ान से श्राॅस सी-2 उपग्रह को 4 मई को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया। इसी वर्ष 15 अक्टूबर को श्री हरिकोटा से पी.एस.एल. वी. डी-2 की मदद से 870 किलोग्राम वजन के आई. आर. एस.-पी 2 को ध्रुवीय सौर स्थित कक्षा में स्थापित किया गया।

1995
कोरू से 7 दिसम्बर को ऐरियन राॅकेट से इनसैट-2 सी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया। रूस के बैकानुर अंतरिक्ष केन्द्र से 28 दिसम्बर को मोलनिया राॅकट से आई. आर. एस.-1 सी को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।

1996
श्री हरिकोटा केन्द्र से पी.एस.एल.वी.डी-3 उपग्रह को 21 मार्च को निर्धारित कक्षा में छोड़ा गया।

1997
कोरू के ऐरियन राॅकेट से 4 जून को इनसैट-2 डी को कक्षा में स्थापित किया गया, कुछ व्यवधान के कारण यह नवम्बर में बेकार हो गया। श्री हरिकोटा केन्द्र से पी.एस.एल.वी.सी.-2 की प्रथम कार्यात्मक उडान से पहली बार 1200 किलोग्राम श्रेणी के आर एस 1 डी उपग्रह को निर्धारित कक्षा में स्थापित किया गया।

1999
फ्रैंच गुयाना के कोरू में ‘ऐरियन राॅकेट’ से 3 अप्रैल को 2550 किलोग्राम के इनसैट-2 ई उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया गया। श्री हरिकोटा केन्द्र से 26 मई को पी.एस.एल.वी.सी-2 से आई. आर. एस. पी-4 और दो अन्य विदेशी उपग्रह ‘किटसेट’ और ‘टुबसेट’ को प्रक्षेपित किया गया।

2000
तीसरी पीढ़ी के प्रथम उपग्रह इनसैट 3-बी (एशिया स्टार सैटेलाइट के साथ) का एरियन-5 राॅकेट द्वारा फ्रेंच गुयाना के कोरू प्रक्षेपण केन्द्र से 22 मार्च, 2000 को सफल प्रक्षेपण किया गया।

2001
18 अप्रैल 2001 को जीसैट-1 को जी.एस.एल.वी.डी-1 प्रक्षेपण यान से श्री हरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया।

2002
24 जनवरी 2002 को इनसैट 3-सी को फ्रैंच गुयाना के कोरू प्रक्षेपण केन्द्र से एरियन-4 से प्रक्षेपित किया गया।

2003
10 अप्रेल 2003 को इनसैट 3-ए कोरू प्रक्षेपण केन्द्र से एरियन-5 से प्रक्षेपित किया गया।

भारत के चन्द्रमा पर पहुँचने के लिए मंत्री मण्डल ने 11 सितम्बर 2003 को चन्द्रयान अभियान की मंजूरी प्रदान की।

2004
20 सितम्बर को जी.एस.एल.वी. – एफ 01 द्वारा एड्यूसेट का सफल प्रक्षेपण किया गया। भारत ने शिक्षा को समर्पित दुनिया के पहले इस उपग्रह का सफल प्रक्षेपण श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन केन्द्र से किया गया। यह उपग्रह देश भर में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के स्कूल, कोलेज एवं उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़कर उन्हें उपग्रह आधारित एकीकृत शिक्षा प्रदान करेगा।

2005
5 मई को इसरो ने कार्टोसेट-1 और हैमसेट से लदे प्रक्षेपणयान सी-6 का सफल प्रक्षेपण किया। देश में निर्मित चैथी पीढ़ी के प्रथम संचार उपग्रह इनसेट 4ए का 22 दिसम्बर, 2005 का फ्रोंच गुयाना के कौरू केन्द्र से प्रक्षेपण किया। दूरदर्शन की डायरेक्ट टू होम सेवा और मौसम की सटीक जानकारी देने वाले इस उपग्रह में उच्च क्षमता के ट्रांसपोंडर्स लगाये गये थे। पूरी तरह स्वदेशी यह उपग्रह का अब तक का सबसे वजनी उपग्रह है।

2007
इसरो ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान सी-7 ने 10 जनवरी 2007 को एस.आर.ई.-1 सहित चार उपग्रहों को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। इसके प्रक्षेपण के साथ भारत अमेरिका, रूस व चीन के बाद चैथा देश है।

2009
इसरो ने 23 सितम्बर 2009 को देश के 16वें दूरसंवेदी उपग्रह ओशनसेट-2 सहित सात उपग्रहों को सतीश ध्वन अंतरिक्ष केन्द्र से सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर किया गया। अंतरिक्ष यान पी.एस.एल.वी. ने ओशनसेट-2 सहित 7 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण कर लगातार 15वीं बार अपनी क्षमता साबित की। इस उपग्रह का कार्य तटीय क्षेत्रों का अध्ययन करना व मौसम की भविष्यवाणी भी करना है।

2010
12 जुलाई 2010 कार्टोसैट-2 बी नामक उपग्रह को पीएसएलवी 15 प्रेक्षण यान से श्री हरिकाटा से प्रक्षेपण किया गया।

2011
20 अप्रैल 2011 रिसोर्स सेट-2 का पीएसएलवी 16 प्रक्षेप यान से श्री हरिकोटा से प्रक्षेपण किया गया।

  • 21 मई 2011 को कौरू अंतरिक्ष केन्द्र से जी सैट-8 का प्रक्षेपण किया गया।
  • 2012 – इसरो ने सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से 26 अप्रैल 2012 को स्वदेशी रडार इमेजिंग सैटेलाइट का प्रेक्षेपण किया। यह हर तरह के मौसम में तस्वीरें लेने में सक्षम है, इसमें सी-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार लगा है। इसे पीएसएलवी 19 द्वारा प्रेक्षेपित किया गया।
  • इसरो ने सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से पीएसएलवी 21 राॅकेट द्वारा भारत ने दो विदेशी उपग्रह का प्रेक्षेपण किया यह भारत का 100वाँ प्रेक्षेपण था।
  • भारत ने 29 सितम्बर 2012 को जीसैट-10 नामक सबसे भारी (3400 किग्रा.) उपग्रह का कौरू से एरियान-5 राॅकेट से प्रक्षेपण किया। यह दूरसंचार, डायरेक्ट टू होम और रेडियो नेविगेशन सेवाओं में वृद्धि में सहायक होगा। इसका प्रेक्षेपण इसरो का 101वाँ प्रेक्षेपण था।
  • 24 सितम्बर 2014 को भारत ने स्वदेशी निर्मित मंगल यान MOM (Mars Orbiter Mission) को मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कराया। इससे भारत मंगल पर यान भेजने वाला विश्व का चैथा (यूरोपीय संघ, अमेरिका व रूस के बाद) देश बन गया है। इसमें भारत प्रथम प्रयास में ही सफल हुआ है।
  • श्री हरिकोटा प्रेक्षेपण केन्द्र से 20-01-2016 को PSLV C-31 प्रेक्षेपण यान द्वारा IRNSS-1E नामक उपग्रह छोड़ा गया। यह India Regional Navigation Satellite System का पाँचवा उपग्रह है।
  • ⇒श्री हरिकोटा प्रेक्षेपण केन्द्र से 10-03-2016 को PSLV C-32 प्रेक्षेपण यान द्वारा IRNSS-1F नामक उपग्रह छोड़ा गया। यह India Regional Navigation Satellite System का छठा उपग्रह है।
  • श्री हरिकोटा प्रेक्षेपण केन्द्र से 28-04-2016 को PSLV C-33 प्रेक्षेपण यान द्वारा IRNSS-1G नामक उपग्रह छोड़ा गया। यह India Regional Navigation Satellite System का सातवाँ व अंतिम उपग्रह है।
  • 22 जून 2016 को PSLV C-34 द्वारा इसरो ने एक साथ 20 उपग्रह श्री हरिकोटा से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से सफल प्रेक्षेपित किये इसमें सबसे प्रमुख उपग्रह कार्टोसेट-2 है, यह शहरी व ग्रामीण इलाकों कें नक्शे बनाने तटवर्ती भूमि के नियम, भूमि सुधार व्यवस्था को मजबूत करने में सहायक होगा। इसके अतिरिक्त भारत के दो अन्य उपग्रह सत्यभामा सैट व स्वयं है।
  • ISRO ने 28 अगस्त, 2016 को एयर ब्रीथिंग प्रणोदन प्रणाली का परीक्षण किया। लागत घटाने और पेलोड क्षमता बढ़ाने की कोशिश के तहत् श्री हरिकोटा से स्क्रैमजेट राॅकेट इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। अपने पाँच सेकेंड के कामकाज के दौरान स्क्रैमजेट इंजन ने पूर्ण रूप से योजना के मुताबिक कार्य किया 300 सेकण्ड की उड़ान के बाद यह वाहन श्री हरिकोटा से 320 किमी. दूर बंगाल की खाड़ी में गिर गया।
  • श्री हरिकोटा प्रेक्षेपण केन्द्र से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से 08-09-2016 को GSLV-F 05 प्रेक्षेपणयान द्वारा INSAT-3DR नामक उपग्रह छोड़ा गया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)

प्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा के नेतृत्व में 1962 में परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा इण्डियन नेशनल कमेटी फाॅर स्पेस रिसर्च का गठन किया गया। इसे 1969 में इसरो (ISRO, Indian Space Research Organisation) नाम से पुनर्गठित किया गया। भारत में कृत्रिम उपग्रहों का निर्माण, विकास तथा प्रेक्षेपण इसरो द्वारा ही किया जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को प्रारम्भ करने का श्रेय डाॅ. विक्रम अंबालाल साराभाई को है। इसरो का प्रमुख केन्द्र श्री हरिकोटा चैन्नई में है। अंतरिक्ष संबंधी अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय केन्द्र अहमदाबाद की फिजिकल रिसर्च लेब है। तिरुवनन्तपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र है। राजस्थान के जोधपुर शहर में भी कृत्रिम उपग्रहों से प्राप्त चित्रों, सूचनाओं और आँकड़ों का अध्ययन करने के लिए दूर संवेदी केन्द्र स्थित है।

डाॅ. विक्रम अंबालाल साराभाई

vikram sarabhai

⇒डाॅ. विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में हुआ। इन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। इन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान का जनक माना जाता है। इन्हें मरणोपरांत पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।

डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम

a p j abdul kalam

⇒डाॅ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने एक वैज्ञानिक और इंजीनियर के तौर पर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और इसरो की कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर कार्य किया। इन्हें मिसाइल मैन भी कहा जाता है।

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