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मानव नेत्र की संरचना – Structure of Human Eye in Hindi

Author: EduTzar | On:1st Jul, 2020| Comments: 0

Friends, today we are going to understand the structure of the human eye, in which we will get information about the structure of the human eye, eye defect, cause of eye defect, prevention of eye defect, cataract and cornea grafting etc.

Table of Content

  • मानव नेत्र की संरचना (Structure of Human Eye)
    • श्वेत पटल
    • काॅर्निया
    • परितारिका
    • पुतली
    • नेत्र लेंस
    • जलीय द्रव
    • रक्त पटल
    • दृष्टिपटल
    • काचाभ द्रव
    • समंजन क्षमता
    • नेत्र की समंजन क्षमता
    • दृष्टि दोष एवं उनका संशोधन
      • निकट-दृष्टि दोष
      • निकट-दृष्टि दोष का कारण
      • निकट-दृष्टि दोष का निवारण
      • दूर-दृष्टि दोष
      • दूर-दृष्टि दोष का कारण
      • दूर-दृष्टि दोष का निवारण
      • जरा-दूर दृष्टिता
      • जरा-दूर दृष्टिता का कारण
      • जरा-दूर दृष्टिता का निवारण
      • दृष्टि वैषम्य दोष
      • दृष्टि वैषम्य दोष का कारण
      • दृष्टि वैषम्य दोष का निवारण
    • मोतियाबिन्द
      • काॅर्निया ग्राफटिंग (Cornea grafting)

मानव नेत्र की संरचना (Structure of Human Eye)

Human Eye
Human Eye

मानव नेत्र की कार्यप्रणाली आॅटोफोकस कैमरे की तरह होती है। नेत्र गोलक की आकृति व व्यास लगभग 2.5 सेमी. होता है।

श्वेत पटल

नेत्र के चारों ओर एक अपारदर्शक श्वेत सुरक्षा कवच बना होता है जिसे श्वेत पटल कहते है।

काॅर्निया

नेत्र के समाने श्वेत पटल के मध्य में थोड़ा उभरा हुआ भाग पारदर्शी होता है। प्रकाश की किरणें इसी भाग से अपवर्तित होकर नेत्र में प्रवेश करती है। नेत्र दान क लिए काॅर्निया का उपयोग होता है।

परितारिका

यह काॅर्निया के पीछे एक अपारदर्शी मांसपेशिया रेशों की संरचना है जिसके बीच में छिद्र होता है। इसका रंग अधिकांशतः काला होता है।

पुतली

परितारिका के बीच वाले छिद्र को पुतली कहते है। परितारिका को मांसपेशियों के संकोचन व विस्तारण से आवश्यकतानुसार पुतली का आकार कम या ज्यादा होता रहता है। तीव्र प्रकाश में इसका आकार छोटा हो जाता है एवं कम प्रकाश में इसका आकार बढ़ जाता है इसलिए जब हम तीव्र प्रकाश से मंद प्रकाश में जाते है, जो कुछ समय तक नेत्र ठीक से देख नहीं पाते है। थोड़ी देर में पुतली का आकार बढ़ जाता है एवं हमें दिखाई देने लगता है।

नेत्र लेंस

परितारिका के पीछे एक लचीले पारदर्शक पदार्थ का लेंस होता है जो माँसपेशियों की सहायता से अपने स्थान पर रहता है। काॅर्निया से अपवर्तित किरणों को रटिना पर फोकसित करने के लिए माँसपेशियाँ के दबाव से इस लेंस की वक्रता त्रिज्या में थोड़ा परिवर्तन होता है। इससे बनने वाला प्रतिबिम्ब छोटा, उल्टा, वास्तविक होता है।

जलीय द्रव

नेत्र लेंस का काॅर्निया के बीच एक पारदर्शक पतला द्रव भरा रहता है जिसे जलीय द्रव कहते है। यह इस भाग में उचित दाब बनाए रहता है ताकि आँख लगभग गोल बनी रहे। साथ ही यह काॅर्निया व अन्य भागों को पोषण भी देता है।

रक्त पटल

नेत्र के श्वेत पटल के नीचे एक झिल्लीनुमा संरचना होती है जो रेटिना को आॅक्सीजन एवं पोषण प्रदान करती है। साथ ही आंख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण करके भीतरी दीवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरूद्ध करती है।

दृष्टिपटल

रक्तपटल के नीचे एक पारदर्शक झिल्ली होती है जिसे दृष्टिपटल कहते हैं। वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें काॅर्निया एवं नेत्र लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना पर फोकसित होती है। रेटिना में अनेक प्रकार से अपवर्तित होकर रेटिना पर फोकसित होती है। रेटिना में अनेक प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती है जो प्रकाश मिलते ही सक्रिय हो जाती हैं एवं विद्युत सिग्नल उत्पन्न करती हैं। रेटिना से उत्पन्न प्रतिबिम्ब के विद्युत सिग्नल प्रकाश नाड़ी द्वारा मस्तिष्क को प्रेषित होते है। मस्तिष्क इस उल्टे प्रतिबिम्ब का उचित संयोजन करके उसे हमें सीधा दिखाता है। रेटिना का उद््भव एक्टोडर्म से होता है।

काचाभ द्रव

नेत्र लेंस व रेटिना के बीच एक पारदर्शक द्रव भरा होता है जिसे काचाभ द्रव कहते है।

समंजन क्षमता

            या

नेत्र की समंजन क्षमता

पक्ष्माभी पेशियों के शिथ्लि होने पर, लेंस पतला हो जाता है। जिससे फोक्स दूरी बढ़ जाती है। इससे हम दूर की वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते है। पक्ष्माभी पेशीयों के सिकुड़ने पर नेत्र लेंस की वक्रता बढ़ जाती है। व लेंस मोटा हो जाता है। जिससे फोकस दूरी घट जाती है व हम निकट की वस्तु को देख पाते है। अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता सिके कारण व अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है, समंजन क्षमता कहलाती है। वह निकटतम दूरी जहाँ तक वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है निकट बिन्दु कहलाता है। सामान्य व्यक्ति के लिए यह दूरी 25 सेमी. होती है। इसी प्रकार नेत्र से वह अधिकतम दूरी, जहाँ तक वस्तु को स्पष्ट देखा जा सकता है, नेत्र का दूर बिन्दु कहलाता है। सामान्य नेत्रों की यह दूरी अनन्त होती है। निकट बिन्दु से दूर बिन्दु के बीच दूरी दृष्टि-परास कहलाती है।

दृष्टि दोष एवं उनका संशोधन

निकट-दृष्टि दोष

इस दोष में दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। इस दोष में वस्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टि पटल के सामने बनता है। इसमें दूर बिन्दु अनंत पर होकर पास आ जाता है।

निकट-दृष्टि दोष का कारण

अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अधिक होना या नेत्र गोलका का लम्बा हो जाना।

निकट-दृष्टि दोष का निवारण

उचित फोकस दूरी वाले अवतल लेंस का उपयोग करके निकट-दृष्टि दोष का निवारण किया जा सकता है।

दूर-दृष्टि दोष

इस दोष मे निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई नहीं देती है। इस दोष में प्रकाश किरणें दृष्टि पटल से पीछे फोकसित होती है। इसमें निकट बिन्दु दूर हो जाता है।

दूर-दृष्टि दोष का कारण

अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना या नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।

दूर-दृष्टि दोष का निवारण

उचित फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस का प्रयोग करके दूर-दृष्टि दोष का निवारण किया जा सकता है।

जरा-दूर दृष्टिता

इस दोष में निकट एवं दूर दोनों प्रकार की वस्तुएँ साफ नहीं दिखाई देती है।

जरा-दूर दृष्टिता का कारण

यह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीेर दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है।

जरा-दूर दृष्टिता का निवारण

उचित फोकस दूरी वाले द्विफोकसी लेंस का उपयोग करके जरा-दूर दृष्टिता का निवारण किया जा सकता है। द्विफोकसी लेंस में ऊपरी भाग अवतल एवं नीचे का भाग उत्तल लेंस का बना होता है।

दृष्टि वैषम्य दोष

⇒दृष्टि वैषम्य दोष या अबिन्दुकता दोष काॅर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण होता है।

दृष्टि वैषम्य दोष का कारण

इसमें व्यक्ति को समान दूरी पर रखी उध्र्वाधर व क्षैतिज रेखाएँ एक साथ स्पष्ट दिखाई नहीं देती है।

दृष्टि वैषम्य दोष का निवारण

बेलनाकार लेंस का उपयोग करके इस दोष का निवारण किया जाता है।

मोतियाबिन्द

नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिन्द कहते है। इसके निवारण के लिए मोतियाबिन्द युक्त नेत्र लेंस को हटाकर कृत्रिम लेंस लगा देते है जिसे इन्ट्रा आक्युअर लेंस कहते है।

  • आँख की जांच करना ओप्थेलम कहलाता है। सबसे बड़ें नेत्र गोलक घोड़ें में होते है। मानव में द्वि नेत्री दृष्टि होती है व अन्य कीटों, गाय, भैंस, घोड़ें में एक नेत्री दृष्टि पाई जाती है। कीटों में संयुक्त आँख होती है। मृग में शरीर के अनुपात में सर्वाधिक बड़ी आँखें पाई जाती है। आँख में अनियंत्रित गतियाँ, अन्तःकर्ण की बीमारी मीनियर्स रोग के लक्षण हैं। मक्खियाँ पराबैगनी प्रकाश में भी देख सकती है।
  • सामान्य नेत्रों को या दोष रहित नेत्रों को इमीट्रापिक नेत्र कहते है।
  • रंगीन दृष्टि मछलियों, सरीसृपों तथा उभयचरों में पाई जाती है।
  • मोनोक्यूलर विजन मेंढ़क, खरगोश व घोड़ें में पाया जाता हे जबकि बाईनोक्यूलर विजन – प्राइमेटस, कपि व बन्दारों में पाया जाता है। एट्राॅपिन एक रासायनिक द्रव है जिसे चिकित्सकों द्वार आँख टेस्ट करने से पहले प्यूपिल के शिथिलन हेतु उपयोग किया जाता है।

काॅर्निया ग्राफटिंग (Cornea grafting)

  • काॅर्निया ग्राफटिंग – काॅर्निया को मृत मनुष्य की आँख से निकाल सकते हैं। इसे संग्रहित कर सकती है। एक अन्य व्यक्ति की दृष्टि बनाये रखने के लिए प्रत्यारोपण भी किया जाता है। काॅर्निया का प्रत्यारोपण सफलल है क्योंकि इसमें रक्त वाहिनियाँ अनुपस्थित होती है।
  • दो नेत्र होने से हमारा दष्टि-क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। मानव के एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150 डिग्री होता है जबकि दो नेत्रों द्वारा यह लगभग 180 डिग्री हो जाता है। वास्तव में, किसी मंद प्रकाशित वस्तु के संसूचन की सामर्थ्य एक ही बजाय दो संसूचकों से बढ़ जाती है। शिकार करने वाले जंतुओं के दो नेत्र प्रायः उनके सिर पर विपरीत दिशाओं में स्थित होते हैं। जिससे कि उन्हें अधिकतम विस्तृत दृष्टि-क्षेत्र प्राप्त हो सके। परन्तु हमारे दोनों नेत्र सिर पर सामने की ओर स्थित होते हैं। इस प्रकार हमारा दृष्टि क्षेत्र ताकम हो जाता है परन्तु हमें त्रिविम चाक्षुकी का लाभ मिल जाता है।

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Wikipedia :

मानव नेत्र

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