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Tissue in Hindi – ऊत्तक | Animal Tissue in Hindi | Plant Tissue in Hindi | Types of Tissue in Hindi

Author: EduTzar | On:16th May, 2020| Comments: 0

हैल्लों दोस्तों ! तो कैसे है आप सभी ? मुझे आशा है कि आप सभी अच्छे होगें। तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम ऊत्तक (Tissue in Hindi) के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने वाले है। जिसमें हम ऊत्तक क्या है (what is tissue) ? ऊत्तक के प्रकार कितने है (Types of Tissue) ? आदि के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें। और अंत में इस आर्टिकल से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का भी अध्ययन करेंगे। तो चलिए दोस्तों बढ़ते है आज के आर्टिकल की ओर।

तो दोस्तों उत्तक (Tissue) के बारे में जानने से पहले हमें यह पता होना जरूरी है कि ऊत्तक किसे कहते है। तब हम अपने अध्ययन को सरलता से समझ सकते है। तो सबसे पहले हम यही जानेंगें कि ऊत्तक क्या है (what is tissue)?/ऊत्तक किसे कहते है ?

Table of Content

  • ऊत्तक (Tissue in Hindi)
    • 1. पादप ऊत्तक (Plant Tissue in Hindi)
    • पादप ऊत्तक के प्रकार
    • 1.1  विभाज्योतिकी ऊत्तक (Meristematic Tissue in Hindi)
      • शीर्षस्थ विभाज्योतिकी ऊत्तक (Apical Meristem Tissue in Hindi)
      • पार्श्व विभाज्योतिकी ऊत्तक (lateral Meristem Tissue in Hindi)
      • अन्तर्वेशी या अंतर्विष्ट विभाज्योतिकी ऊत्तक (Intercalary Meristem Tissue in Hindi)
    • 1.2 स्थायी ऊत्तक (Permanent Tissue)
    • उत्पत्ति के आधार पर स्थायी ऊत्तक के प्रकार
    • सरंचना के आधार पर स्थायी ऊत्तक के प्रकार
    • 1.2.3 सरल स्थायी ऊत्तक (Simple tissues)
      • मृदुत्तक (पेरेनकाइमा) (Parenchyma)
      • मृदुत्तक के कार्य
      • स्थूलकोण ऊत्तक (कोलेनकाइमा) (Collenchyma)
      • दृढ़ ऊत्तक (स्कलेरेन्काइमा) (Sclerenchyma)
      • दृढ़ ऊत्तक के कार्य
    • 1.2.4 जटिल स्थायी ऊत्तक (Complex permanent tissue)
      • जाइलम (Xylem)
        • वाहिनिकाएँ
        • वाहिकाएँ
        • जाइलम तन्तु
        • जाइलम मृदुत्तक
      • फ्लोएम (Phloem)
        • चालनी नलिकाएँ
        • सहकोशिकाएँ
        • फ्लोएम तंतु
        • फ्लोएम मृदुत्तक
    • 2. जन्तु ऊत्तक (Animal Tissue in Hindi)
    • जन्तु ऊत्तकों के प्रकार
    • 2.1 एपिथीलियमी ऊत्तक (Epithelial Tissue)
      • शल्की एपिथीलियम
      • पक्ष्माभी स्तम्भाकार एपिथीलियम
      • घनाभाकार एपिथीलियम
    • 2.2 संयोजी ऊत्तक (Connective Tissues)
    • 2.3 पेशीय ऊत्तक (Muscular Tissues)
    • 2.4 तंत्रिका ऊत्तक (Nervous Tissues)
    • 2.4.1 एपीथीलियम ऊत्तक
      • सरल एपीथीलियम ऊत्तक
        • शल्की सरल एपीथिलियम ऊत्तक
        • स्तम्भी सरल एपीथीलियम ऊत्तक
        • घनाकार सरल एपीथीलियम ऊत्तक
        • रोमाभी सरल एपीथीलियम ऊत्तक
        • ग्रंथिल सरल एपीथीलियम ऊत्तक
        • संवेदी सरल एपीथीलियम ऊत्तक
        • जनन सरल एपीथीलियम ऊत्तक
      • संयुक्त एपीथीलियम ऊत्तक
    • 2.4.2 पेशीय ऊत्तक
      • अरेखित पेशियाँ
      • रेखित पेशियाँ
      • हृदय पेशियाँ
    • 2.4.3 संयोजी ऊत्तक
      • साधारण संयोजी ऊत्तक
      • तंतुमय संयोजी ऊत्तक
      • कंकाल संयोजी ऊत्तक
    • 2.4.4 तंत्रिका ऊत्तक
      • तंत्रिका कोशिकाएँ
      • तंत्रिका तंतु
      • न्यूरोग्लिया
    • 2.4.5 तरल ऊत्तक
    • महत्वपूर्ण प्रश्न
    • Human Tissue in Hindi
    • Tissue in Hindi
    • Tissue in hindi
    • Plant tissues
    • What is tissue

ऊत्तक (Tissue in Hindi)

tissue

परिभाषा : समान उत्पत्ति, सरंचना एवं कार्यों वाली संरचनाओं के समूह को ऊत्तक कहते है। या समान उत्पत्ति तथा समान कार्यों को सम्पादित करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊत्तक कहा जाता है।

औतिकी : ऊत्तक का अध्ययन जीव विज्ञान की जिस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है। उसे औतिकी कहते है।

तो दोस्तों ऊत्तक को दो भागों में विभाजित किया गया है:

  1. पादप ऊत्तक (Plant Tissue in Hindi)
  2. जन्तु ऊत्तक (Animal Tissue in Hindi)

तो दोस्तों सबसे पहले हम पादप ऊत्तक को समझेंगें। और जानेंगें कि पादप ऊत्तक क्या है ?

1. पादप ऊत्तक (Plant Tissue in Hindi)

plant tissue

पौधों के शरीर में प्रत्येक ऊत्तक का एक विशिष्ट कार्य होता है। सभी ऊत्तक शीर्षस्थ कोशिकाओं के समूह में विभाजन से उत्पन्न होते हैं तथा धीरे-धीरे अपने कार्यों के अनुरूप अनुकूलित हो जाते है।

पादप ऊत्तक के प्रकार

flow chart of plant tissue

ऊत्तक के कोशिकाओं की विभाजन क्षमता के आधार पर पादप ऊत्तक दो प्रकार के होते है –

  • 1.1 विभाज्योतिकी ऊत्तक (Meristematic Tissue)
  • 1.2 स्थायी ऊत्तक (Permanent Tissue)

तो दोस्तो सबसे पहले हम विभाज्योतिकी ऊत्तक के बारे में चर्चा करेंगें। जिसमें जानेंगें कि विभाज्योतिकी ऊत्तक क्या होते है ? और इनके लक्षण कौन-कौनसे है ?

1.1  विभाज्योतिकी ऊत्तक (Meristematic Tissue in Hindi)

यह ऊत्तक ऐसी कोशिकाओं का समूह होता है, जिसमें बार-बार सूत्री विभाजन करने की क्षमता होती है। यह ऊत्तक अवयस्क जीवित कोशिका का बना होता है। इस ऊत्तक की कोशिकाएँ छोटी, अंडाकार या बहुभुजी होती है और इसकी भित्ति सैल्यूलोज की बनी होती है। प्रत्येक कोशिका घने, कणयुक्त कोशिका द्रव्य से भरी होती है। इन कोशिकाओं में प्रायः रसधानी अनुपस्थित रहती है। इसमें एक बड़ा केन्द्रक होता है तथा कोशिकाओं के बीच अंतरकोशिकीय स्थान नहीं पाया जाता है।

दोस्तों विभाज्योतिकी ऊत्तक को भी ऊत्तक स्थिति के आधार पर पुनः निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया गया है –

  • 1.1.1 शीर्षस्थ विभाज्योतिकी ऊत्तक (Apical Meristem)
  • 1.1.2 पार्श्व विभाज्योतिकी ऊत्तक (lateral Meristem)
  • 1.1.3 अन्तर्वेशी विभाज्योतिकी ऊत्तक (Intercalary Meristem)

तो सर्वप्रथम हम शीर्षस्थ विभाज्योतिकी ऊत्तक के बारे में अध्ययन करेंगें। कि शीर्षस्थ विभाज्योतिकी ऊत्तक किसे कहते है ? और इनके लक्षण क्या है ?

शीर्षस्थ विभाज्योतिकी ऊत्तक (Apical Meristem Tissue in Hindi)

दोस्तों यह ऊत्तक जड़ एवं तने के शीर्ष भाग में उपस्थित रहते है। तथा लम्बाई में वृद्धि करता है। यह ऊत्तक प्राथमिक विभाज्योतिकी से बनता है। इसमें कोशिकाएँ विभाजित एवं विभेदित होकर स्थायी ऊत्तक बनाते हैं। इसमें पौधों में प्राथमिक वृद्धि होती है।

पार्श्व विभाज्योतिकी ऊत्तक (lateral Meristem Tissue in Hindi)

यह ऊत्तक जड़ तथा तने के पाश्र्व भाग में होता है एवं द्वितीयक वृद्धि करता है। इससे संवहन ऊत्तक बनते है एवं जो भोजन संवहन का कार्य करते हैं। एवं संवहन ऊत्तकों के कारण तने की चौड़ाई में वृद्धि होती है। संवहन ऊत्तक में अवस्थित कैम्बियम एवं वृक्ष के छाल के नीचे का कैम्बियम पार्श्व विभाज्योतिकी का उदाहरण है। पार्श्व विभाज्योतिकी ऊत्तक ही द्वितीयक विभाज्योतिकी है।

अन्तर्वेशी या अंतर्विष्ट विभाज्योतिकी ऊत्तक (Intercalary Meristem Tissue in Hindi)

यह ऊत्तक स्थायी ऊत्तक के बीच-बीच में पाया जाता है। ये पत्तियों के आधार में या टहनी के पर्व दोनों ओर पाए जाते हैं। यह वृद्धि करके स्थायी ऊत्तकों में परिवर्तित हो जाते है।

तो दोस्तों अब हम ऊत्तक के दूसरे प्रकार स्थायी ऊत्तक के बारे में अध्ययन करेंगें कि स्थायी ऊत्तक किसे कहते है ?

1.2 स्थायी ऊत्तक (Permanent Tissue)

विभाज्योतिकी ऊत्तक की वृद्धि के फलस्वरूप स्थायी ऊत्तक का निर्माण होता है। जिसमें विभाजन या सजीव विभाजन की क्षमता नहीं होती लेकिन कोशिका का रूप एवं आकार निश्चित रहता है। ये मृत्त या सजीव होते है। कोशिका भित्ति पतली या मोटी होती है। कोशिका द्रव्य में बड़ी रसधानी रहती है।

उत्पत्ति के आधार पर स्थायी ऊत्तक के प्रकार

उत्पत्ति के आधार पर स्थायी ऊत्तक के निम्न दो प्रकार है –

  • 1.2.1 प्राथमिक ऊत्तक
  • 1.2.2 द्वितीयक ऊत्तक

प्राथमिक स्थायी ऊत्तक शीर्षस्थ एवं अन्तर्वेशी विभाज्योतक से तथा द्वितियक स्थायी ऊत्तक पार्श्व विभाज्योतक या कैम्बियम कोशिकाओं से बनता है।

सरंचना के आधार पर स्थायी ऊत्तक के प्रकार

सरंचना के आधार पर स्थायी ऊत्तक के निम्न दो प्रकार है –

  • 1.2.3 सरल ऊत्तक/सरल स्थायी ऊत्तक (Simple tissues)
  • 1.2.4 जटिल ऊत्तक (Complex permanent tissue)

तो दोस्तों सर्वप्रथम सरल स्थायी ऊत्तक के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें।

1.2.3 सरल स्थायी ऊत्तक (Simple tissues)

यह ऊत्तक समरूप कोशिकाओं का बना होता है। यह तीन प्रकार कहा होता है –

  • 1.2.3.1 मृदुत्तक (Parenchyma)
  • 1.2.3.2 स्थूलकोण ऊत्तक (Collenchyma)
  • 1.2.3.3 दृढ़ ऊत्तक (Sclerenchyma)

मृदुत्तक (पेरेनकाइमा) (Parenchyma)

यह अत्यन्त सरल प्रकार का स्थायी ऊत्तक होता है। इस ऊत्तक की कोशिकाएँ जीवित, गोलाकार, अंड़ाकार, बहुभुजीय या अनियमित आकार की होती है। इस ऊत्तक की कोशिका में सघन कोशा द्रव्य एवं केन्द्रक पाया जाता है। इनकी कोशिका भित्ति पतील एवं सेल्यूलोज की बनी होती है। इस प्रकार की कोशिकओं के बीच अन्तर कोशिका स्थान रहता है। कोशिका मध्य में एक बड़ी रसधानी रहती है। यह नए तने, जड़ एवं पत्तियों के एपिडर्मिस और काॅटेक्स में पाया जाता है। कुछ मृदुत्तक में क्लोरोफिल पाया जाता है जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सम्पन्न होती है। इन ऊत्तकों को हरित ऊत्तक या क्लोरोनकाइमा कहते है। जलीय पौधों में तैरने के लिए गुहिकाएँ रहती है। जो मृदुत्तक के बीच पायी जाती है। इस प्रकार के मृदुत्तक की वायुतक या ऐरेनकाइमा कहते हैं जो पादप को उत्पलावन बल प्रदान करते है।

मृदुत्तक के कार्य

  • यह एपिडर्मिस के रूप में पौधों का संरक्षण करता है।
  • पौधे के हरे भागों में, खासकर पत्तियों में यह भोजन का निर्माण करता है।
  • यह ऊत्तक संचित क्षेत्र में भोजन का संचय करता है। यह उत्सर्जित पदार्थों, जैसे गोंद, रेजिन, टेनिन आदि को भी संचित करता है।
  • यह ऊत्तक भोजन के पाश्र्व-चालन में सहायक होता है।
  • इसमें पाए जाने वाले अंतरकोशिका स्थान गैसीय विनिमय में सहायक होते है।

स्थूलकोण ऊत्तक (कोलेनकाइमा) (Collenchyma)

इस ऊत्तक की कोशिकाएँ केन्द्र युक्त, लम्बी या अण्डाकार या बहुर्भुज जीवित तथा रसधानी युक्त होती है। इनमें अंतर कोशिकीय स्थान बहुत कम होता है। यह ऊत्तक पौधे के नए भागों में पाया जाता है। यह विशेषकर तने के एपिडर्मिस के नीचे, पर्णवृत्त, पुष्पवृन्त और पुष्पावली वृत्त पर पाया जाता है। लेकिन जड़ों में नहीं पाया जाता है।

स्थूलकोण ऊत्तक के कार्य

  • यह पोधों को यांत्रिक सहायता प्रदान करता है।
  • जब इनमें हरितलवक पाया जाता है, जब यह भोजन का निर्माण होता है।

दृढ़ ऊत्तक (स्कलेरेन्काइमा) (Sclerenchyma)

इस ऊत्तक की कोशिकाएँ मृत्त, लम्बी, संकरी तथा दोनों सिरों पर नुकीली होती है। इनमें जीवद्रव्य नहीं होता है एवं इनकी भित्ति लिग्निन के जमाव के कारण मोटी हो जाती है। ये भित्तियाँ इतनी मोटी होती है कि कोशिका के भीतर कोई आन्तरिक स्थान नहीं रहता है। यह काॅटेक्स, पेरिसाइकिल, संवहन बण्डल में पाया जाता है। दृढ़ ऊत्तक पौधों के तना, पत्तियों के शिरा, फलों तथा बीजों के बण्डल मे एवं नारियल के बाहरी रेशेदार छिलके में पाए जाते है। जिन पौधों से रेशा उत्पन्न होता है। इनमें यह ऊत्तक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

दृढ़ ऊत्तक के कार्य

  • यह पौधों को यांत्रिक सहारा प्रदान करता है।
  • यह पौधों के आन्तरिक भागों की रक्षा करता है।
  • पौधों के बाह्य परतों में यह रक्षात्मक ऊत्तक के रूप में कार्य करता है।
  • यह पौधों को सामथर्य, दृढ़ता एवं लचीलापन प्रदान करता है।

तो दोस्तों अब स्थायी ऊत्तक के दूसरे प्रकार जटिल ऊत्तक का अध्ययन करेंगें। तो चलिए बढ़ते है जटिल स्थायी ऊत्तक की ओर।

1.2.4 जटिल स्थायी ऊत्तक (Complex permanent tissue)

दो या दो से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से बने ऊत्तक जटिल स्थायी ऊत्तक कहलाते है। ये एक इकाई के रूप में एक साथ कार्य करते है। ये जल, खनिज लवणों तथा खाद्य पदार्थ को पौधों के विभिन्न अंगों तक पहुँचाते है।

दोस्तों जटिल स्थायी ऊत्तक भी दो प्रकार के होते है। जो निम्न है –

  • 1.2.4.1 जाइलम या दारू ऊत्तक (Xylem)
  • 1.2.4.2 फ्लोएम या बास्ट ऊत्तक (Phloem)

जाइलम एवं फ्लोएम मिलकर संवहन बण्डल का निर्माण करते है। अतः इन दोनों को संवहन ऊत्तक भी कहते है।

जाइलम (Xylem)

यह ऊत्तक पौधों के जड़, तना, तथा पत्तियों में पाया जाता है। इसे चालन ऊत्तक भी कहते है। वे ऊत्तक जो शरीर के विभिन्न भागों तक जल को संवहन करते है। उन्हें जाइलम ऊत्तक कहते है।

यह चार विभिन्न प्रकार के तत्वों से मिलकर बना होता है। ये निम्न है –

  • 1.2.4.1.1 वाहिनिकाएँ
  • 1.2.4.1.2 वाहिकाएँ
  • 1.2.4.1.3 जाइलम तंतु
  • 1.2.4.1.4 जाइलम मृदुत्तक

तो सबसे पहले हम वाहिनिकाएँ समझेंगे कि आखिर वाहिनिकाएँ क्या होती है ?

वाहिनिकाएँ

इनकी कोेशिका लम्बी, जीवद्रव्य विहिन, दोनों सिरों पर नुकीली या मृत्त होती है। इनकी कोशिका भित्ति मोटी तथा स्थूलित होती है। वाहिनिकाएँ संहवनी पौधों की प्राथमिक एवं द्वितीयक जाइलम दोनों में पायी जाती है। ये पौधों को यांत्रिक सहारा प्रदान करती है तथा जल को तने द्वारा जड़ से पत्ती तक पहुँचाती है।

वाहिकाएँ

इनकी कोशिकाएँ मृत्त एवं लम्बी नली के समान होती है। कभी-कभी स्थूलित भित्तियाँ विभिन्न तरह से मोटी होकर वलयाकार, सर्पिलाकार, गर्ती जालिकारूपी वाहिकाएँ बनाती है। ये वाहिकाएँ, आवृत बीजों पौधों के प्राथमिक एवं द्वितियक जाइलम में पायी जाती है। ये पौधों की जड़ों से जल एवं खनिज-लवण को पत्ती तक पहुँचाते है।

जाइलम तन्तु

ये लम्बे, शंकुरूप तथा स्थूलित भित्ति वाली मृत कोशिका होती है। ये प्रायः काष्ठीय द्विबीजपत्री पौधों में पाये जाते है। ये मुख्यतः काष्ठीय द्विबीजपत्री पौधों में पाये जाते है। ये मुख्यतः पौधों को यांत्रिक सहारा प्रदान करते है।

जाइलम मृदुत्तक

इनकी कोशिकाएँ प्रायः पेरेन काइमेट्स एवं जीवित होती है। यह भोजन संग्रह का कार्य करती है। यह किनारे की ओर पानी के पाश्र्वीय संवहन में मदद करता है।

तो दोस्तों अब हम फ्लोएम के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें। तो चलिए जानते है कि फ्लोएम क्या होता है ?

फ्लोएम (Phloem)

जाइलम की भाँति फ्लोएम भी पौधे की जड़, तना एवं पत्तियों में पाया जाता है। यह पत्तियों द्वारा तैयार भोज्य पदार्थों को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाता है। यह एक संचयक ऊत्तक है। जो पौधों को यांत्रिक संचयन प्रदान करता है। या वह ऊत्तक जो भाज्य पदार्थों को पादपों के विभिन्न भागों तक पहुँचाने का कार्य करते है। उन्हें फ्लोएम कहते है।

फ्लोएम निम्न चार तत्वों का बना होता है –

  • 1.2.4.2.1 चालनी नलिकाएँ
  • 1.2.4.2.2 सहकोशिकाएँ
  • 1.2.4.2.3 फ्लोएम तन्तु
  • 1.2.4.2.4 फ्लोएम मृदुतक
चालनी नलिकाएँ

ये लम्बी, बेलनाकार तथा छिद्रित भित्ति वाली कोशिकाएँ होती है। ये एक-दूसरे एक पर परत सदृश सजी रहती है। दो कोशिकाओं की विभाजनभित्ति छिद्रयुक्त होती है, जिसे – चालनी पट्टी कहते है। चालनी नलिका की वयस्क अवस्था में केन्द्रिक अनुपस्थित होता है। एक चालाानी नलिका का कोशिकाद्रव्य-चालनी पट्टिका के छिद्र द्वारा ऊपर और नीचे के चालनी के नलिकाओं से संबंद्ध रहते हैं। चालनी नलिकाएँ संहवनी अंग से पौधे के फ्लोएम में पाये जाते है। इस नलिका द्वारा तैयार भोजन पत्तियों से संचय अंग और संचय अंग से पौधे के वृद्धि क्षेत्र में जाता है।

सहकोशिकाएँ

ये चालनी नलिकाओं के पाश्र्व भाग में स्थित रहती है। प्रत्येक सहकोशिका लम्बी एवं जीवित होती है। जिसमें केन्द्रक एवं जीवद्रव्य होता है। ये केवल एन्जियोस्पर्म के फ्लोएम में पायी जाती है। यह चालनी नलिकाओं में भोज्य पदार्थ के संवहन में सहायता करता है।

फ्लोएम तंतु

ये लम्बी दृढ़ एवं स्केलेरनकाइमेट्स कोशिकाओं की बनी होती है। यह फ्लोएम ऊत्तक को यांत्रिक सहारा प्रदान करता है।

फ्लोएम मृदुत्तक

ये जीवित, लम्बी तथा केन्द्रकयुक्त कोशिकाएँ होती है। जो सहकोशिकओं, के निकट स्थित होती है। ये भोज्य पदार्थ के संवहन में सहायक होती है।

तो दोस्तों अब तक हमने पादप ऊत्तक के बारे में जानकारी प्राप्त की है। और अब हम जन्तु ऊत्तक की ओर बढ़ रहे है जिसमें हम जन्तु ऊत्तक और जन्तु ऊत्तक के विभिन्न प्रकारों को समझेंगें। तो चलिए जाने कि जन्तु ऊत्तक क्या है ?

2. जन्तु ऊत्तक (Animal Tissue in Hindi)

animal tissue

जन्तुओं में पाए जाने वाले ऊत्तक, जन्तु ऊत्तक कहलाते है। जिनका जन्तुओं के शरीर में एक विशेष कार्य होता है।

जन्तु ऊत्तकों के प्रकार

दोस्तो कार्य के आधार पर जन्तु ऊत्तकों के चार भागों में बाँट सकते हैं। जो निम्न प्रकार है –

  • 2.1 उपकला / एपिथीलियमी ऊत्तक (epithelial tissue)
  • 2.2 संयोजी ऊत्तक (connective tissues)
  • 2.3 पेशीय ऊत्तक (muscular tissues)
  • 2.4 तंत्रिका ऊत्तक (nervous tissues)

तो सर्वप्रथम हम एपिथीलियमी ऊत्तक के बारे में चर्चा करेंगें। तो चलिए जानते है कि एपिथीलियमी ऊत्तक क्या है ?

2.1 एपिथीलियमी ऊत्तक (Epithelial Tissue)

  • जन्तु के शरीर के ढकने या बाह्य रक्षा प्रदान करने वाले ऊत्तक एपिथीलियमों ऊत्तक होते है।
  • ये भिन्न-भिन्न प्रकार के शारीरिक तन्त्रों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए अवरोध का निर्माण करते है।
  • ये भिन्न-भिन्न प्रकार के शारीरिक तन्त्रों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए अवरोध का निर्माण करते हैं।
  • सामान्यतः सभी एपिथीलियमों को एक बाह्य रेशेदार आधार झिल्ली उसे नीचे रहने वाले ऊत्तकों से अलग करती है।

एपिथीलियमी ऊत्तक के निम्न तीन प्रकार है –

  • 2.1.1 शल्की एपिथीलियम
  • 2.1.2 पक्ष्माभी स्तम्भाकार एपिथीलियम
  • 2.1.3 घनाभाकार एपिथलीयम

तो चलिए एपिथीलियमी ऊत्तक के विभिन्न प्रकार के बारे में जानकारी प्राप्त करते है –

शल्की एपिथीलियम

ये अत्यधिक पतली और चपटी होती है तथा कोमल अस्तर का निर्माण करती है। शरीर का रक्षात्मक कवच इन्हीं शल्की एपिथीलियम से बना होता है। ये कई पात्रों के पैटर्न में व्यवस्थित होती है। इसलिए इन एपिथीलियम को स्तरित एपिथीलियम कहते है।

पक्ष्माभी स्तम्भाकार एपिथीलियम

श्वांसनली में स्तम्भाकार एपिथीलियम ऊत्तक में पक्ष्माभ होते हैं, जो कि एपिथीलियम ऊत्तक की कोशिकाओं की सतह पर बाल जैसी रचनाएँ होती है। ये पक्ष्माभ गति कर सकते है। तथा इनकी गति श्लेषा को आगे स्थानान्तरित करके साफ करने में सहायता करती है। इस प्रकार के एपिथीलियम को पक्ष्माभी स्तम्भाकार एपिथीलियम कहते है।

घनाभाकार एपिथीलियम

धनाकार एपिथीलियम वृक्कीय नली तथा लार ग्रन्थी की नली के अस्तर का निर्माण करता है, जहाँ यह उसे यांत्रिक सहारा प्रदान करता है। ये एपिथीलियम कोशिकाएँ प्रायः ग्रन्थि कोशिका के रूप में अरिरिक्त विशेषता अर्जित करती है, जो एपिथीलियमी ऊत्तक की सतह पर पदार्थों का स्त्राव कर सकती है। कभी-कभी एपिथीलियम ऊत्तक का कुछ भाग अन्दर की ओर मुड़ा होता है तथा एक बहुकोशिक ग्रंथि का निर्माण होता है। यह ग्रंथिल एपिथीलियम कहलाता है।

दोस्तों अब हम जन्तु ऊत्तक के द्वितिय प्रकार संयोजी ऊत्तक के बारे में चर्चा करने वाले है। तो चलिए जानते है कि संयोजी ऊत्तक क्या है ?

2.2 संयोजी ऊत्तक (Connective Tissues)

रक्त एक प्रकार का संयोजी ऊत्तक है। संयोजी ऊत्तक की कोशिकाएँ आपस में कम जुड़ी होती है और अंतरकोशिकीय आधात्री में धँसी होती है। रक्त के तरल आधात्री भाग को प्लाज्मा कहते है। प्लाज्मा में लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ तथा प्लेटलेट्स निलंबित होते है। प्लाज्मा में प्रोटीन, नमक तथा हार्मोन भी होते हैं। रक्त गैसों, शरीर के पचे हुए भोजन, हार्मोन और उत्सर्जी पदार्थों को शरीर के भाग से दूसरे भाग में संवहन करता है।

  • अस्थि, संयोजी ऊत्तक का एक अन्य उदाहरण है। यह पंजा का निर्माण कर शरीर को आकार प्रदान करता है। यह माँसपेशियों को सहारा देती है और शरीर के मुख्य अंगो को सहारा देती है। यह ऊत्तक मजबूत और कठोर होता है। अस्थि कोशिकाएँ कैल्शियम तथा फास्फोरस से बनी होती है।
  • उपास्थि प्रोटीन और शर्करा की बनी होती है। यह अस्थियों के जोड़ों को चिकना बनाती है। उपास्थि नाक, कान, कंठ और श्वांस नलीं में भी उपस्थित होती है।
  • एरिओलर संयोजी ऊत्तक त्वचा और माँसपेशियों के बीच, रक्त नलिका के चारों ओर नसों और अस्थि मज्जा में पाया जाता है।
  • वसा का संग्रह करने वाला वसामय ऊत्तक त्वचा के नीचे आंतरिक अंगो के बीच पाया जाता है। इस ऊत्तक की कोशिकाएँ वसा की गोलिकाओं से भरी होती है। वसा संग्रहित होने के कारण यह ऊष्मीय कुचालक का कार्य भी करता है।

2.3 पेशीय ऊत्तक (Muscular Tissues)

पेशीय ऊत्तक लम्बी कोशिकाओं का बना होता है। जिसे पेशीय रेशा भी कहते हैं। यह हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी है। पेशियों में एक विशेष प्रकार की प्रोटीन होती है जिससे सिकुड़ने वाली प्रोटीन कहते है। जिसके संकुचन और प्रसार के कारण गति होती है।

  • कुछ पेशियों को हम इच्छानुसार गति कर सकते है। जिन्हें एच्छिक पेशी कहते है। इस ऊत्तक की कोशिकाएँ लम्बी, बेलनाकार, शाखा रहित और बहुनाभीय होती है।
  • चिकनी पेशियाँ अथवा अनैच्छिक पेशियाँ लम्बी और इनका आखिरी सिरा नुकीला हेाता है। ये एक केन्द्रकीय होती है।
  • हृदय पेशियाँ जीवन भर लयबद्ध होकर प्रसार एवं संकुचन करती रहती है। इन अनैच्छिक पेशियों को कार्डिक (हृदयक) पेशी कहा जाता है। हृदय की पेशी कोशिकाएँ बेलनाकार, शाखाओं वाली और एक-केन्द्रिय होती है।

2.4 तंत्रिका ऊत्तक (Nervous Tissues)

तंत्रिका ऊत्तक की कोशिकाएँ बहुत शीघ्र उत्तेजित होती है अरैर इस उत्तेजना को बहुत ही शीघ्र पूरे शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती है। मस्तिष्क, मेरूरज्जु तथा तंत्रिकाएँ सभी तंत्रिका ऊत्तकों की बनी होती है। तंत्रिका ऊत्तक की कोशिकओं को तंत्रिका कोशिका या न्यूराॅन कहा जाता है। न्यूराॅन में कोशिकाएँ केन्द्रक तथा कोशिका द्रव्य होते हैं।

विशेष – एपिथीलियम, पेशीय संयोजी तथा तंत्रिका ऊत्तक जंतु ऊत्तक कहते है।

  • आकृति और कार्य के आधार पर एपिथीलियमी ऊत्तक को शलकी, घनाकार, स्तम्भाकार, रोमीय तथा ग्रन्थिल श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।
  • हमारे शरीर में विद्यमान संयोजी ऊत्तक के विभिन्न प्रकार है – एरिओलर ऊत्तक, एडीपोज ऊत्तक, अस्थि, कंडरा, स्नायु उपास्थि तथा रक्त आदि।
  • पेशीय ऊत्तक न्यूराॅन का बना होता है, जो संवेदन को प्राप्त और संचालित करता है।
  • चूँकि समान उत्पत्ति, संरचना एवं कार्यों वाली कोशिका के समूह को ऊत्तक कहते है।

जन्तुओं के शरीर में निम्नलिखित प्रकार के ऊत्तक पाये जाते है –

  • 2.4.1 एपीथीलियम ऊत्तक (उपकला ऊत्तक)
  • 2.4.2 पेशीय ऊत्तक
  • 2.4.3 संयोजी ऊत्तक
  • 2.4.4 तंत्रिका ऊत्तक
  • 2.4.5 तरल या संवहनीय ऊत्तक

2.4.1 एपीथीलियम ऊत्तक

  • एपीथीलियम ऊत्तक जंतुओं के शरीर के विभिन्न बाहरी तथा भीतरी अंगों की सतह का आवरण बनाते हैं।

एपीथीलियम ऊत्तक दो प्रकार के हाते है –

  • 2.4.1.1 सरल एपीथीलियम ऊत्तक
  • 2.4.1.2 संयुक्त एपीथीलियम ऊत्तक

सरल एपीथीलियम ऊत्तक

ये निम्न प्रकार के होत है –

  1. शल्की सरल एपीथिलियम ऊत्तक
  2. स्तंभी सरल एपीथिलियम ऊत्तक
  3. घनाकार सरल एपीथिलियम ऊत्तक
  4. रोमाभि सरल एपीथिलियम ऊत्तक
  5. ग्रंथिल संवेदी सरल एपीथिलियम ऊत्तक
  6. जनन सरल एपीथिलियम ऊत्तक
शल्की सरल एपीथिलियम ऊत्तक
  • शल्कि उपकला की कोशिकाएँ पतली, चैड़ी, चपटी तथा षट्कोणीय होती हे। कोशिकाओं की दीवारें एक-दूसरे से सटी रहती हैं। प्रत्येक कोशिका में एक पतला केंद्रक होता है। यह ऊत्तक त्वचा की बाहरी सतह, रक्तवाहिनियों, कान के लेविरिन्थ, फेंफड़ों वायुकोष्ठिकाओं और वृक्क के वोमेन सम्पुटों पर पाया जाता है।
स्तम्भी सरल एपीथीलियम ऊत्तक
  • स्तंभी उपकला आहारनाल के विभिन्न अंगों तथा ज्ञानेन्द्रियों व उनकी वाहिनियों की भीतरी सतहों पर पायी जाती है। तथा स्त्राव व अवशोषण में सहायक होती है।
घनाकार सरल एपीथीलियम ऊत्तक
  • घनाकार उपकला की कोशिकाएँ घनाकार होती है तथा प्रत्येक कोशिका में एक गोलाकार केंद्रक पाया जाता है। यह श्वेद ग्रन्थियों, एवं वृक्क नलिकाओं, जनन ग्रंथियों व थाइराॅयड ग्रंथियों में पायी जाती है।
रोमाभी सरल एपीथीलियम ऊत्तक
  • रोमाभि उपकला श्वासनली, अण्डवाहिनी तथा मुख्य गुहा में पायी जाती है।
ग्रंथिल सरल एपीथीलियम ऊत्तक
  • ग्रंथिल उपकला एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय दो प्रकार की होती है। एककोशिकीय आंत तथा श्लेष्मिक कला तथा बहुकोशिकीय श्वेद ग्रंथि, त्वचा की तेल ग्रन्थि, विष ग्रंथि तथा लार ग्रंथि में पायी जाती है।
संवेदी सरल एपीथीलियम ऊत्तक
  • तंत्रिका संवेदी उपकला में उद्दीपन ग्रहण करने के लिए इनके मुक्त सिरों पर संवेदी रोम होते है। इनके दूसरे सिरों पर तंत्रिका तंतु होते हैं, जो संवेदनाओं को मस्तिष्क तक पहुँचाने है। यह उपकला नाक, आँख व कान में पायी जाती है।
जनन सरल एपीथीलियम ऊत्तक
  • जनन उपकला स्तंभाकार कोशिकाओं की बनी होती है तथा वृषण व अण्डाशय की भीतरी सतह में पायी जाती है। यह बार-बार विभाजित होकर शुक्राणु तथा अण्डे बनाती है।

संयुक्त एपीथीलियम ऊत्तक

  • संयुक्त एपीथीलियम का कार्य जीवनपर्यंत विभाजन करके नयी कोशिकाओं को जन्म देना है। इससे निर्मित कोशिकाएँ बाहरी सतह की ओर खिसकती रहती है। तथा मृत कोशिकाओं की जगह लेती है। इस प्रकार की उपकला त्वचा की उपचर्म, नेत्रों की काॅर्निया, मुख्य ग्रासन गुहिका, ग्रासनली, मलाशय तथा योनी आदि में पायी जाती है।

2.4.2 पेशीय ऊत्तक

पेशीय ऊत्तक तीन प्रकार की होते है। जो निम्न प्रकार है –

  • 2.4.2.1 अरेखित पेशियाँ
  • 2.4.2.2 रेखित पेशियाँ
  • 2.4.2.3 हृदय पेशियाँ

अरेखित पेशियाँ

  • अरेखित पेशी ऊत्तक की चिकनी पेशी या अनैच्छिक पेशी ऊत्तक भी कहते है। अरेखित पेशियाँ स्वतः फैलती तथा सिकुड़ती है। इनके ऊपर जीवन की इच्छा का कोई नियंत्रण नहीं होता है।

रेखित पेशियाँ

  • इन पेशियों को ऐच्छिक पेशी भी कहते है। ये पेशियाँ जंतु के कंकाल से जुड़ी रहती हैं और इनमें एच्छिक गति होती है।

हृदय पेशियाँ

  • हृदय पेशियाँ केवल हृदय की मांसल दीवार पर पायी जाती है। ये पूर्णतः अनैच्छिक होती है। हृदय जीवनपर्यंत इन्हीं के कारण धड़कता रहता है।

2.4.3 संयोजी ऊत्तक

  • संयोजी ऊत्तक एक अंग को दूसरे अंग से अथवा एक ऊत्तक से दूसरे ऊत्तक को जोड़ता है। ये शरीर में सबसे अधिक फैले रहते हैं तथा शरीर का लगभग 30 प्रतिशत भाग इन्हीं से बना होता है।

संयोजी ऊत्तक की तीन प्रमुख श्रैणियाँ होती हैं। जो निम्न प्रकार है –

  • 2.4.3.1 साधारण संयोजी ऊत्तक
  • 2.4.3.2 तंतुमय संयोजी ऊत्तक
  • 2.4.3.3 कंकाल संयोजी ऊत्तक

साधारण संयोजी ऊत्तक

  • साधारण संयोजी ऊत्तक तीन प्रकार के होते है – अंतरालित ऊत्तक, जो त्वचा के नीचे, पेशियों के बीच तथा रक्त वाहिनियों व तंत्रिका के चारों ओर स्थित होते है।

तंतुमय संयोजी ऊत्तक

  • तंतुमय संयोजी ऊत्तक में मेट्रिक्स की मात्रा कम व रेशेदार तंतुओं की संख्या अधिक होती है।

ये दो प्रकार के होते है –

  • श्वेत रेशेदार
  • पीत रेशेदार

श्वेत की अपेक्षा पीत रेशेदार लचीले ऊत्तक होते हैं, जैसे गर्दन, उंगलियों के पोर।

कंकाल संयोजी ऊत्तक

  • कंकाल संयोजी ऊत्तक कंकाल का निर्माण करता है।

ये दो प्रकार के होते है। जो निम्न है –

  • उपास्थि
  • अस्थि

उपास्थि ऊत्तक काॅण्ड्रिन नामक प्रोटीन का बना होता है तथा अर्द्धठोस होता है। अस्थि ऊत्तक दृढ़ होता है तथा ओसीन नामक प्रोटीन को बना होता है।

2.4.4 तंत्रिका ऊत्तक

बहुकोशिकीय जंतुओं में अनेक जैविक क्रियाओं का नियंत्रण तथा सभी प्रकार के उद्दीपनों की जानकारी देने व प्रतिक्रिया कराने में तंत्रिका तंत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। समस्त तंत्रों व अंगों का सामंजस्य स्थापित करना तंत्रिका ऊत्तक की प्रमुख विशेषता है।

तंत्रिका ऊत्तक के प्रमुख भाग निम्न है –

2.4.4.1 तंत्रिका कोशिकाएँ
2.4.4.2 तंत्रिका तंतु
2.4.4.3 न्यूरोग्लिया

तंत्रिका कोशिकाएँ

तंत्रिका कोशिका के तीन प्रमुख भाग है जो निम्न है –

  1. कोशिकाकाय या साइटोन
  2. वृक्षिका या डेड्राॅन और
  3. तंत्रिकाश या एक्साॅन
  • साइटाॅन तंत्रिका कोशिका का प्रमुख भाग होता है। इसके कोशिका द्रव्य में अनेक प्रोटीन युक्त रंगीन कण होते है। जिन्हें निसिल्स कण कहते है।
  • कोशिकाकाय के अनेक प्रवर्ध बाहर की ओर निकलते रहते है, जिनमें से एक लंबा मोटा व बेलनाकार होता है। इसे एक्साॅन या तंत्रिकाश कहते है। बाकी सब छोटे प्रवर्धों को डेड्राॅन या वृक्षिका कहते है .

तंत्रिका तंतु

तंत्रिका तंतु दो प्रकार के होते है। जो निम्न प्रकार है –

  1. संवेदी या अभिवाही तंत्रिका तंतु
  2. प्रेरक या अपवाही तंत्रिका तंतु
  • संवेदी तंत्रिका तंतु आवेग को ग्राही अंगों से मस्तिष्क या रज्जु में ले जाते है।
  • प्रेरक तंत्रिका तंतु आवेगों को मस्तिष्क या मेरूरज्जु से कार्यकारी अंगों में ले जाते है।

न्यूरोग्लिया

  • ये विशेष प्रकार की कोशिकाएँ हैं, जो मस्तिष्क गुहिकाओं को स्तरित करती है।

2.4.5 तरल ऊत्तक

  • रुधिर तथा लसिका तरल या संवहनीय ऊत्तक कहलाते है। ये भी एक प्रकार के संयोजी ऊत्तक है जो शरीर के विभिन्न अंगों को एक-दूसरे से संबंद्ध करते हैं, लेकिन सुविधा के लिए इनको अलग से तरल ऊत्तक मानते है।
पेशीय ऊत्तक
प्रकार उदारहण विशेषता
1. रेखितऐच्छिककंकाली पेशीबेलनाकार बहुनाभिकीय
2. अरेखितअनैच्छिकआहार ना की पेशीतर्कुरूपी एककेन्द्रकीय
3. कार्डिकरेखित व अनैच्छिकहृदयक पेशीबेलनाकार एककेंद्रीय
क्या आप यह जानते है ?
  • तने के परिधीय भाग में वृद्धि का कारण पाश्र्व विभज्योतिक होता है।
  • स्कलेरेन्काइमा ऊत्तक की भीत्ति पर लिग्निन का जमाव होता है जो सीमेंट की तरह कार्य करता है।
  • एपीडर्मिस की भीत्ति पर सुबेरिन का जमाव होता है। जो इन छालों को हवा एवं पानी के लिए अभेद बनाता है।
  • नारियल के रेशे स्कलेरेन्काइमा ऊत्तक हैं।

महत्वपूर्ण प्रश्न

  • जटिल ऊत्तक का उदाहरण है ?
    (अ) पैरेन्काइमा (ब) काॅलेन्काइमा
    (स) संवहन ऊत्तक® (द) स्क्लेनेन्काइमा

 

  • वह संयोजी जो माँसपेशियों को अस्थियों से जोड़ता है, कहलाता है –
    (अ) डेंडराइट्स (ब) एक्साॅन
    (स) कंडरा® (द) एडिपोस

 

  • ऐरेन्काइमा पाया जाता है –
    (अ) जलीय पादपों में® (ब) समतलीय पादपों में
    (स) मरूस्थलीय पादपों में (द) उपर्युक्त सभी में

 

  • हमारे शरीर में ऊष्मीय कुचालकता कार्य करने वाला ऊत्तक है –
    (अ) पेशीय ऊत्तक (ब) तन्त्रिका ऊत्तक
    (स) वसामय ऊत्तक® (द) संयोजी ऊत्तक

 

  • सुबेरिम पाया जाता है –
    (अ) जायलम ऊत्तक में (ब) फ्लोएम ऊत्तक में
    (स) रक्षी ऊत्तक में® (द) पेरेन्काइमा में

 

  • वृक्कीय नली का अस्तर बना होता है –
    (अ) घनाकार एपिथीलियम द्वारा® (ब) स्तम्भाकार एपिथीलियम द्वारा
    (स) पक्ष्माभी एलिथीलियम द्वारा (द) उपर्युक्त सभी द्वारा

 

  • पौधें को लचीलापन प्रदान करने वाला ऊत्तक है –
    (अ) पैरेन्काइमा (ब) काॅलेन्काइमा®
    (स) स्क्लेरेन्काइमा (द) उपर्युक्त सभी ऊत्तक

 

  • जाइलम की संरचना में पाये जाते है –
    (अ) वाहिनीकाएँ एवं वाहिकाएँ (ब) जाइलम पैरेन्काइया
    (स) जाइलम फाइबर (द) उपर्युक्त सभी®

 

  • बीजों व फलों के कठोर छिलके बने होते हैं –
    (अ) पैरेन्काइमा के (ब) कालेन्काइमा के
    (स) स्क्लेरेन्काइमा के® (द) संवहन ऊत्तक के

 

  • क्लोरोफ्लास्ट पाये जाते हैं –
    (अ) कोलेन्काइमा ऊत्तक में
    (ब) पेरेन्काइमा ऊत्तक में®
    (स) जाइलम ऊत्तक में
    (द) संरक्षी ऊत्तक में

tissues

  • जड़ व तने के अग्र भाग में उपस्थित ऊत्तक है –
    (अ) स्थायी (ब) जटिल
    (स) विभाज्योतक ® (द) संवहन

 

  • पादपों में फ्लोएम ऊत्तक का कार्य है –
    (अ) संयोजी® (ब) पेशीय
    (स) तन्त्रिका (द) एपिथीलियम

 

  • हमारी त्वचा की एपिथीलियम कहलाती है –
    (अ) सरल शल्की (ब) सरल घनाकार
    (स) स्तरित शल्की® (द) स्तरित घनाकार

 

  • तंत्रिका ऊत्तक की इकाई है –
    (अ) ऐक्सान (ब) न्यूराॅन®
    (स) गुच्छिका (द) कोशिकाय

  • रूधिर एक प्रकार का ऊत्तक है –
    (अ) संयोजी® (ब) पेशीय
    (स) तन्त्रिका (द) एपिथीलियम

 

  • प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है –
    (अ) क्लोरेनकाइमा में® (ब) स्कलेरेन्काइमा में
    (स) काॅलेन्काइमा में (द) इन सभी में

 

  • पादपों में बना खाद्य पदार्थ पौधे के विभिन्न अंगों में किसके द्वारा पहुँचाता है –
    (अ) जाइलम (ब) कार्टेक्स
    (स) फ्लोएम® (द) पिथ

 

  • विभज्योत्तक किसके लिए उत्तरदायी है ?
    (अ) खाद्य संश्लेषण (ब) खाद्य भण्डारण
    (स) कोशिका विभाजन® (द) कोशिका परिपक्वन

 

  • पादपों में जल तथा खनिज लवणों का संचालन किसके द्वारा होता है –
    (अ) जाइलम® (ब) फ्लोएम
    (स) पिथ (द) कार्टेक्स

 

  • विभज्योतक कोशिकाएँ होती हैं –
    (अ) पतली भित्ति वाली® (ब) लिग्निन युक्त
    (स) बहुकेन्द्र की (द) कोई भी नहीं

tissue in hindi

  • ‘जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार’ यह मत दिया है –
    (अ) हक्सले® (ब) मैल्पिगी
    (स) राबर्ट हुक (द) पाश्चा

 

  • विभज्योतक ऊत्तक होता है –
    (अ) मूलरोम में (ब) पत्ती में
    (स) तने के शीर्ष पर® (द) पुष्प में

 

  • मनुष्य के शरीर में सबसे लम्बी कोशिका होती है –
    (अ) हाथ की कोशिका (ब) पैर की कोशिका
    (स) तन्त्रिका कोशिका® (द) इनमें से काई नहीें

 

  • निम्न में एक ऊत्तक कौन सा है –
    (अ) यकृत (ब) रूधिर®
    (स) पैक्रीयास (द) आमाशय

 

  • बालों की प्राथमिक उपयोगिता है –
    (अ) लिंग विभक्तिकरण (ब) सुन्दरता
    (स) कोई उपयोग नहीं (द) सुरक्षा®

 

  • लिगामेन्ट एक संरचना है जो जोड़ती है –
    (अ) अस्थियों से पेशियों को
    (ब) अस्थि से अस्थि को®
    (स) अस्थि से तन्त्रिका को
    (द) पेशी से त्वचा को

 

  • लिग्निन कोशिकाओं को बनाने का कार्य करता है –
    (अ) दृढ़® (ब) लचीली
    (स) कमजोर (द) पतली

 

  • ऊँट का कूबड़ किस ऊत्तक का बना होता है –
    (अ) कंकालीय ऊत्तक (ब) पेशीय ऊत्तक
    (स) उपास्थि ऊत्तक (द) वसामय ऊत्तक®

 

  • निम्न में से सत्य कथन है –
    (अ) विभज्योत्तक के पास रसधानी नहीं होती है।
    (ब) क्लोरोफिल युक्त कोशिकाओं को क्लोरेन्काइमा कहते है।
    (स) विभज्योत्तक की कोशिकाएँ विभाजित होकर स्थायी ऊत्तक बनाती है।
    (द) उपरोक्त सभी कथन सत्य है।®

 

  • दृढ़ ऊत्तक की भित्ति होती है –
    (अ) पेक्टिन युक्त (ब) लिग्निन युक्त®
    (स) सुबेरियन युक्त (द) क्यूटिन युक्त

Human Tissue in Hindi

  • तन्त्रिका कोशिका को कहते हैं –
    (अ) न्यूराॅन® (ब) एक्सोन
    (स) डेन्ड्राइट (द) कोशिकाकाय

 

  • कोशिकाओं का वह समूह जो उत्पत्ति, संरचना व कार्य में समान होता है, कहलाता है –
    (अ) ऊत्तक® (ब) अंग
    (ब) अंगतन्त्र (द) जाइलम

 

  • कौन से पेशी ऊत्तक जन्तु की इच्छानुसार कार्य करते है –
    (अ) रेखित® (ब) आरेखित
    (स) हृदयक (द) कोई भी नहीं

  • लम्बी, लिम्निनयुक्त, संकरी एवं मृत कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं –
    (अ) जाइलम में® (ब) फ्लोएम में
    (स) स्कलेरेन्काइमा में (द) पैरेन्काइमा में

 

  • अरेखित पेशियाँ पायी जाती है –
    (अ) हृदय में (ब) आमाशय में®
    (स) जाँघ में (द) बाँह में

 

  • चालनी नलिकाएँ पायी जाती है –
    (अ) जाइलम में (ब) फ्लोएम में®
    (स) कैम्बियम में (द) विभज्योतक में

 

  • किस पेशी ऊत्तक की कोशिकाएँ शाखित होती हैं ?
    (अ) रेखित पेशियाँ (ब) अरेखित पेशियाँ
    (स) हृदयक पेशियाँ® (द) माँसपेशियाँ

 

  • आँत के भीतरी अस्तर में एपीथीलियम होती है –
    (अ) शल्की एपीथीलियम
    (ब) स्तम्भाकार एपीथीलियम®
    (स) पद्माभी एपीथीलियम
    (द) घनाकार एपीथिलियम

 

  • संकुचनशीलता का गुण पाया जाता है –
    (अ) तन्त्रिका कोशिका में (ब) पेशीऊत्तक में®
    (स) संयोजी ऊत्तक में (द) उपर्युक्त सभी में

 

  • वायुत्तक का प्रमुख कार्य है –
    (अ) उत्पलवन® (ब) प्रकाश संश्लेषण
    (स) संचरण (द) श्वसन

Tissue in Hindi

  • रूधिर के तरल आघाती भाग को कहते है –
    (अ) आर.बी.सी. (ब) डब्लू.बी.सी.
    (स) प्लेटलेट्स (द) प्लाज्मा®

 

  • निम्न में से सत्य कथन है –
    (अ) पौधों में कठोरता और मजबूती स्क्लेरेन्काइमा के कारण होती है।
    (ब) नारियल का रेशेदार छिलका स्क्लेरेन्काइमा ऊत्तक का बना होता है।
    (स) स्क्लेरेन्काइमा ऊत्तक की कोशिकाएँ मृत, लम्बी और पतली होती है।
    (द) उपरोक्त सभी कथन सत्य है।®

 

  • हरित मृदुतक का कार्य है ?
    (अ) श्वसन (ब) प्रकाश संश्लेषण®
    (स) वाष्पोत्सर्जन (द) परासरण

 

  • निम्न में से सत्य कथन है –
    (अ) पौधों में लचीलेपन का गुण काॅलेन्काइमा के कारण होता है।
    (ब) स़्त्री कोशिकाएँ स्टोमेा में पायी जाती है।
    (स) पत्तियों की एपिडर्मिस में छोटे-छोटे छिड़ों को स्टोमेटा कहते है।
    (द) उपरोक्त सभी कथन सत्य है।®

 

  • मृदुत्तक है –
    (अ) सरल® (ब) विशिष्ट
    (स) जटिल (द) स्थाई

 

  • काॅर्क व छाल किसकी सक्रियता को प्रदर्शित करते हैं –
    (अ) प्राथमिक विभज्योत्तक
    (ब) द्वितीयक विभज्योत्तक®
    (स) प्राक विभज्योत्तक
    (द) अन्य

 

  • ऊत्तकजन सिद्धान्त किसने दिया –
    (अ) नजेबी (ब) शिमट
    (स) हेन्सटीन® (द) फास्टर

 

  • पादप शरीर की आकृति में वृद्धि का कारण होता है –
    (अ) अग्रान्थ विभज्योत्तक® (ब) अन्तर्वेशी
    (स) पाश्र्व (द) अन्य

 

  • कैम्ब्रियम का निर्माण किसमें होता है –
    (अ) प्राक् त्वचा (ब) प्राक् एथा®
    (स) भरण विभज्योत्तक (द) अन्तर्वेशी विभज्योत्तक

Tissue in hindi

  • पेशी निर्माण करने वाली कोशिकाएँ हैं –
    (अ) सार्कों ब्लास्ट (ब) आॅस्टीयो ब्लास्ट
    (स) मायो ब्लास्ट® (द) कोई नहीं

 

  • पौधों की चैड़ाई या मोटाई किसकी सक्रियता से होती है –
    (अ) अग्रस्थ (ब) अन्तर्वेशी
    (स) पाश्र्व® (द) अन्य

 

  • पादप कोशिका में लचीलापन का कारण होता है –
    (अ) मृदुतक (ब) स्थूलोतक®
    (स) दृढ़ोतक (द) वायुत्तक

 

  • पेशियों की कार्यात्मक इकाई है –
    (अ) टीलो मीयर (ब) क्रोमो मीयर
    (स) सार्कों मीयर (द) कोई नहीं

 

  • लिग्निन का जमाव किसमें पाया जाता है –
    (अ) दृढ़ोत्तक® (ब) स्थूलोत्तक
    (स) वायुत्तक (द) हरित मृदुतक

 

  • पेशी ऊत्तक का विकास होता है भू्रण की –
    (अ) एक्टोर्डम में (ब) एण्डोडर्म में
    (स) मीसोडर्म में® (द) कोई नहीं

 

  • रबड़क्षीर स्त्रावित होता है –
    (अ) सरल ऊतक से (ब) जटिल ऊत्तक से
    (स) स्त्रावी ऊत्तक से® (द) अन्य

 

  • भुजाओं व पादों में पायी जाने वाली पेशी है –
    (अ) रेखित पेशी (ब) हृदय पेशी
    (स) तंत्रिका पेशी (द) कंकालीय पेशी®

 

  • कैल्शियम कार्बोनेट के क्रिस्टन कहलाते हैं –
    (अ) सिस्टोलिथ® (ब) रेकिड
    (स) युकोर्बिया (द) आरजीमेन

Plant tissues

  • रेखिय पेशियाँ होती है –
    (अ) ऐच्छिक (ब) अनैच्छिक®
    (स) दोनों प्रकार की (द) तंत्रिका कोशिका

 

  • रबर का स्त्रोत है –
    (अ) हीविया® (ब) फाइकस
    (स) यूकोर्बिया (द) आरजीमेन

 

  • चिकनी पेशियाँ पायी जाती है –
    (अ) अस्थियों में (ब) आन्तरिक अंगो में®
    (स) हृदय में (द) भुजा व बांह में

 

  • मृदुत्तक कोशिकाओं में कोशिका भित्ति होती है –
    (अ) लिग्निन की (ब) लुबेरिन की
    (स) सेल्यूलोज की® (द) अन्य

 

  • हृदय में पायी जाने वाली पेशियाँ कहलाती है –
    (अ) हृदय पेशियाँ® (ब) अस्थीय पेशियाँ
    (स) चिकनी पेशियाँ (द) कोई नहीं

 

  • वार्षिक वलय पाया जाती है जहाँ –
    (अ) मौसम का परिवतिन होता है®
    (ब) मौसम समान रहता है
    (स) अधिकतर ऊष्ण मौसम के खनिज पौधों में
    (द) अन्य

 

  • अस्थि, उपास्थि, टेन्डन एवं रूधिर है –
    (अ) पेशीय ऊत्तक (ब) तंत्रिका ऊत्तक
    (स) संयोजी ऊत्तक® (द) उपकला ऊत्तक

 

  • सहकोशिकाएँ पायी जाती है –
    (अ) शैवाल (ब) बायोकाइरा
    (स) टेरिडोफाइटा (द) आवृत्त बीजी®

 

  • पेशी, जो बिना रूके कार्य करती है –
    (अ) ऐच्छिक पेशी (ब) हृदयक पेशी®
    (स) चिकनी पेशी (द) अनैच्छिक पेशी

What is tissue

  • कैलोस है –
    (अ) कार्बोहाइड्रेट्स® (ब) प्रोटीन
    (स) वसा (द) तेल

 

  • निम्नलिखित में से कौनसी पेशी ऐच्छिक है –
    (अ) हृदयक पेशी (ब) कंकालीय पेशी®
    (स) चिकनी पेशी (द) अनैच्छिक पेशी

 

  • जिम्नोस्पर्मज के फ्लोएम में क्या अनुपस्थित होता है –
    (अ) चालनी कोशिका अनुपस्थित
    (ब) सह कोशिका अनुपस्थित®
    (स) रेशे अनुपस्थित
    (द) मृदुत्तक अनुपस्थित

तो दोस्तों मुझे आशा है कि आपको यह आर्टिकल (ऊत्तक -Tissue) जरूर अच्छा लगा होगा। तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें। और इसी तरह की बेहतर जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहें।

धन्यवाद !

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